Wednesday, 30 September 2015

पहाड़ का " हरा सोना " ; “ बांज ”



पहाड़ का " हरा सोना " ; “ बांज ”


हरयुं भरयुं
मुल्क मेरु
    रौंत्याळु__
  कुमाऊँ-गढ़वाळ...
बानि-बानि का
 डाळा बुटळा,
  डांडी-कांठी...
  उंधारि उकाळ..
   “हरयुं सोनु”__
बांट्दा दिखेदंन
  झुमरयाला...
   बांज का बजांण....
    हरयुं भरयुं__
मुल्क मेरु
   रौंत्याळु__
       कुमाऊँ-गढ़वाल....... 
 
....विजय जयाड़ा 07.04.15
         जैव विविधता लिए और बहु आयामी उपयोगिता के कारण पहाड़ का “ हरा सोना “ कहे जाने वाले बांज (Oak), के वन 1200 मी. से 3500 मी. की ऊँचाई पर पाए जाते हैं.बांज की विस्तृत क्षेत्र में फैली जड़ों द्वारा वर्षा जल को अवशोषित कर, भूमिगत करने का गुण, जलस्रोतों में जड़ी-बूटियों के सत्व युक्त, मौसमानुकूल तासीर लिए जल का सतत प्रवाह बनाये रखता है साथ ही ये जड़ें भूमि कटाव को भी रोकती हैं। बांज की पत्तियाँ सड़-गल कर मिटटी की सबसे उपरी परत में ह्यूमस का निर्माण करती हैं. जलावन के रूप में इसकी लकड़ी, अन्य लकड़ियों की तुलना में अधिक ऊर्जा और ताप देने के कारण सर्वश्रेष्ठ है. कृषि में प्रयुक्त होने वाले कुदाल, दरातीं के मूंठ, हल के नसुड़ा,पाटा बनाने में इस वृक्ष की टिकाऊ व मजबूत लकड़ी का प्रयोग किया जाता है. दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक चारे के रूप दी जाने वाले इस वृक्ष की पत्तियां पशुओं के लिए बिछावन के रूप में भी प्रयोग की जाती हैं. मल -मूत्र में सन जाने के बाद इसकी पत्तियां खेतों के लिए अच्छी खाद बन जाती है. जैव-विविधता को पोषित करते बांज के वनों में झड़ चुकी पत्तियों में विभिन्न वनस्पतियाँ व जंतु शरण पाते हैं ।
      मुक्त पशु चराई के कारण बांज के नवांकुर नष्ट हो रहे हैं. वन संकुचन के कारण चारे और ईंधन के लिए बार-बार कटाई, बांज को ठूंठ (सूखे पेड़) में परिवर्तित कर रही है.
      ऊँचाइयों पर सेब, आलू, चाय के विकसित होते बागान, बांज को लील रहे हैं. ऐसे में समय रहते बांज के अधिकाधिक रोपण, संवर्धन व संरक्षण की आवश्यकता है. कहीं ऐसा न हो, “ विकास “ के नाम पर अनियोजित व अनियंत्रित कटान तथा विपणन में सुलभ फायदेमंद कृषि के लोभ में किसान का मित्र, " पहाड़ का हरा सोना ",
दुआधार, टिहरी गढ़वाल .

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