पहाड़ का " हरा सोना " ; “ बांज ”
हरयुं भरयुं
मुल्क मेरु
रौंत्याळु__
कुमाऊँ-गढ़वाळ...
बानि-बानि का
डाळा बुटळा,
डांडी-कांठी...
उंधारि उकाळ..
“हरयुं सोनु”__
बांट्दा दिखेदंन
झुमरयाला...
बांज का बजांण....
हरयुं भरयुं__
मुल्क मेरु
रौंत्याळु__
कुमाऊँ-गढ़वाल.......
मुल्क मेरु
रौंत्याळु__
कुमाऊँ-गढ़वाळ...
बानि-बानि का
डाळा बुटळा,
डांडी-कांठी...
उंधारि उकाळ..
“हरयुं सोनु”__
बांट्दा दिखेदंन
झुमरयाला...
बांज का बजांण....
हरयुं भरयुं__
मुल्क मेरु
रौंत्याळु__
कुमाऊँ-गढ़वाल.......
....विजय जयाड़ा 07.04.15
मुक्त पशु चराई के कारण बांज के नवांकुर नष्ट हो रहे हैं. वन संकुचन के कारण चारे और ईंधन के लिए बार-बार कटाई, बांज को ठूंठ (सूखे पेड़) में परिवर्तित कर रही है.
ऊँचाइयों पर सेब, आलू, चाय के विकसित होते बागान, बांज को लील रहे हैं. ऐसे में समय रहते बांज के अधिकाधिक रोपण, संवर्धन व संरक्षण की आवश्यकता है. कहीं ऐसा न हो, “ विकास “ के नाम पर अनियोजित व अनियंत्रित कटान तथा विपणन में सुलभ फायदेमंद कृषि के लोभ में किसान का मित्र, " पहाड़ का हरा सोना ",
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