Friday, 18 September 2015

प्रबल झंझावत में तू ...









 
प्रबल झंझावत में तू
बन अचल हिमवान रे मन।

हो बनी गम्भीर रजनी,
सूझती हो न अवनी,

ढल न अस्ताचल अतल में
बन सुवर्ण विहान रे मन।

उठ रही हो सिन्धु लहरी
हो न मिलती थाह गहरी
नील नीरधि का अकेला
बन सुभग जलयान रे मन।

कमल कलियाँ संकुचित हो,
रश्मियाँ भी बिछलती हो,
तू तुषार गुहा गहन में
बन मधुप की तान रे मन।


.............सोहनलाल द्विवेदी
 

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