“ फांसी घर ", पुरानी जेल
मौलाना कलाम मेडिकल कॉलेज , दिल्ली
गत पोस्ट से निरन्तर ...
जब 1911 में अंग्रेजों ने कलकत्ता से राजधानी दिल्ली लाने का निश्चय किया तो ये बात रास बिहारी बोस जैसे देशभक्तों को नागवार गुजरी. उन्होंने देशभक्त साथियों के साथ मिलकर तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग की बम फेंक कर हत्या करने की ठान ली. इस काम के लिए रास बिहारी जी ने राजकीय सेवा से 37 दिन का अवकाश लिया (उस समय वे फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट, देहरादून में लिपिक के पद पर कार्यरत थे). बम फेंकने के लिए 20 वर्षीय बसंत कुमार विश्वास को चुना गया.
दिल्ली को राजधानी हस्तांतरण किये जाने के उपलक्ष्य में, 23 दिस.1912 को लार्ड हार्डिंग हाथी पर बैठकर जुलूस के आगे-आगे, 500 वर्दीधारी और 2500 बिना वर्दी के सुरक्षा कर्मियों के साथ चल रहे थे, जुलूस चांदनी चौक पर पंजाब नेशनल बैंक के पास दोपहर 11.45 पहुंचा ही था की 20 वर्षीय बसंत कुमार विश्वास ने महिला वेश में हार्डिंग पर बम फैंक दिया. बम की आवाज 6 मील दूर तक सुनाई दी, हार्डिंग को काफी चोटें आई और उनका महावत मारा गया.
खोजी दस्ते के विपरीत दिशा में जाने का फायदा इन देशभक्तों ने उठाया और आसानी से भागने में सफल हो गए. बाद में बसंत कुमार विश्वास को पिता को मुखाग्नि देते हुए गिरफ्तार कर लिया गया, पहले उनको नाबालिक होने के कारण उम्र कैद की सजा हुई लेकिन अंग्रेज उनको जीवित नहीं छोड़ना कहते थे उनकी अधिक उम्र को साबित कर बसंत कुमार को अम्बाला में 9मई 1915 को फांसी की सजा दी गयी रास बिहारी बोस जापान भागने में सफल हुए. 8मई 1915 को इसी स्थान पर मास्टर अमीर चंद, भाई बाल मुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को फांसी दी गयी ..
अंग्रेजों के समय यह स्थान जेल हुआ करता था, हजारों देशभक्तों को यहाँ यातनाएं दी गयी, अनेकों को फांसी दी गयी. द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिकी सैनिकों की चिकित्सा के लिए यहाँ अस्पताल बना दिया गया, जो युद्धोपरांत अमेरिका ने अंग्रेजों को हस्तांतरित कर दिया. जिसे मेडिकल कॉलेज के रूप में विकसित किया गया जो स्वतंत्र भारत में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के रूप में देश की सेवा कर रहा है ..
देशभक्तों की शहादत के यहाँ कोई अवशेष नहीं हैं तस्वीर में दिखाई दे रहे छोटे से पार्क में उस समय के ये पांच पत्थर शहीद देशभक्तों के जज्बे की कहानी मूक स्वर में बयां करते जान पड़ते हैं.
शहीदों की याद में पार्क में बनाया गया ऊंचा स्मारक व 14 शहीदों के नाम लिखा शिलापट्ट, बाद में शीला दीक्षित सरकार के समय बनाया गया है.
स्वातंत्र्य वीरों के जन्म दिवस व शहादती दिवस पर हम उनकी प्रतिमाओं पर श्रद्धांजलि देकर इतिश्री कर संतोष कर लेते हैं लेकिन उनकी देशप्रेम की भावनाओं को निरंतर जागृत रखने के लिए, बनाये गए इन स्मारकों की तरफ न जाकर हम शॉपिंग माल की चकाचौंध, फन पार्कों में मौज मस्ती और " लवर्स पॉइंट " तलाशते हैं !! . मैं किसी बहस को नहीं उकसा रहा लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहूँगा की भावी पीढ़ी में देशप्रेम के संस्कार हस्तांतरित करने के लिए, सपरिवार इन शहादत के मंदिरों का भी रुख कर लिया जाय तो वह समाज हित व देश हित में ही होगा. सर्वधर्म सम्भाव वास्तविक रुप में, इन्हीं स्मारकों में परिलक्षित होता है ।
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