महाभारत कालीन भैरव मंदिर, पुराना किला : दिल्ली
कल रविवार था. पत्नी के आग्रह पर पत्नी व बेटी के साथ कालका जी और भैरव जी के दर्शन करने पहुँच गया. दोनों ही स्थान दिल्ली में विशिष्ट स्थान रखते हैं तस्वीर में पुराने किले ( पांडवों का किला) की चारदीवारी से सटे, महाभारत कालीन भैरव मंदिर का मुख्य द्वार स्पष्ट दिखाई दे रहा है. कहा जाता है
महाभारत युद्धोपरांत जब युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर में नीलम के सवा गज ऊँचे शिवलिंग की स्थापना करनी चाही तो आसुरी शक्तियों ने स्थापना में व्यवधान उत्पन्न किया तब श्री कृष्ण ने उनको भैरव की सहायता लेने का आदेश दिया. भैरव तैयार हो गए लेकिन शर्त थी कि भीम के कंधे पर बैठकर ही हस्तिनापुर आयेंगे, भीम उनको लेकर चले लेकिन भ्रम वशात यहीं पर अवस्थित कर दिया. जब भीम को यह ज्ञान हुआ तो उन्होंने भैरव को फिर हस्तिनापुर चलने को कहा लेकिन भैरव दिए गए वचनानुसार यहाँ से आगे चलने को तैयार नहीं हुए और भीम को रक्षा का विश्वास दिलाकर यहीं स्थित हो गए.हस्तिनापुर में आसुरी शक्तियों के उत्पात के समय भीम ने भैरव बाबा का स्मरण किया और भैरव बाबा ने उनका मर्दन किया.
भयग्रस्त असुरों ने यहाँ आकर भैरव को मनाकर खुश करने के लिए मदिरापान करवाया जिस कारण आज भी यहाँ भैरव बाबा को कार्यों में विघ्न समाप्त करने मन वांछित फल पाने की आस में बाबा को प्रसन्न करने के उद्देश्य से पूजा अर्चना की जाती है तथा मदिरा चढ़ाई जाती है और प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है. इस स्थान पर भैरव बाबा को ग्राम देवता के रूप में स्थापित किया गया था.
बेटी की पढाई की व्यस्तता से उत्पन्न समय अल्पता के कारण ज्यादा गहराई से स्थान का अध्ययन न कर सका लेकिन जिज्ञासा अवश्य जागृत हुई जल्दी ही पुन: इस स्थान का रुख करने की अभिलाषा है ...
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