परम्परागत पौष्टिक नाश्ता
चटनी और मक्खन के साथ मंडुवे (कोदा, रागी) की रोटी
ठण्ड के मौसम में दिन भर घूमने का इरादा हो और चूल्हे के पास बैठकर सुबह-सुबह मक्खन और चटनी के साथ मंडुवे (कोदा, रागी) की दो गर्मागर्म रोटी नाश्ते में मिल जाय !! फिर तो नाश्ते का आनंद कई गुना बढ़ जाता है ! ये पौष्टिक नाश्ता मेरे लिए दिन भर ऊर्जा देने के लिए पर्याप्त ईंधन है..कहा जाता हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है या यूँ कहिये !! अनुपलब्धता, मानव मन को किसी वस्तु के प्रति अधिक आकर्षित करती है !! पहले इस भोजन को गरीबों का मोटा-सोटा भोजन कहकर दोयम दृष्टि से देखा जाता था. आज उत्तराखंड की शादियों में देखता हूँ पढ़े-लिखे, सूटेड-बूटेड संभ्रांत लोग कोदे की रोटी की लालसा में कतार में खड़े दिखाई देते हैं !!
कई रेस्टोरेंट्स के मेन्यु में उत्तराखंड के
परम्परागत, बाड़ी, झंगोरा, फाणु, चैंस्वांड़ि पल्यो (छंछेड़ु), गथवाणीं,
भट्वाणी, कंडाली साग, धाबड़ी, लेंग्ड़ा, कंकोड़ा आदि पकवानों को स्पेशियल
रेसिपी के रूप में शुमार किया जाता है. इन पकवानों को कभी गरीबों का भोजन
मानकर पकवानों में दोयम श्रेणी में रखा जाता था !!
शायद !! शिक्षा के प्रसार व मानव में विश्लेष्णात्मक अभिवृत्ति के विकास ने इन पकवानों की पौष्टिकता से रूबरू कराकर, आधुनिकता की चकाचौंध में इन रसायन व कीटनाशक रहित अनाज से बने पकवानों से विमुख हुए मानव को पकवानों के माध्यम से अपनी स्वस्थ संस्कृति व पर,म्पराओं की ओर आकर्षित करना प्रारंभ कर दिया है !! मैं इसे शुभ संकेत ही कहूँगा .
शायद !! शिक्षा के प्रसार व मानव में विश्लेष्णात्मक अभिवृत्ति के विकास ने इन पकवानों की पौष्टिकता से रूबरू कराकर, आधुनिकता की चकाचौंध में इन रसायन व कीटनाशक रहित अनाज से बने पकवानों से विमुख हुए मानव को पकवानों के माध्यम से अपनी स्वस्थ संस्कृति व पर,म्पराओं की ओर आकर्षित करना प्रारंभ कर दिया है !! मैं इसे शुभ संकेत ही कहूँगा .
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