Saturday, 26 September 2015

हुमायूँ का मकबरा : दिल्ली



  हुमायूँ का मकबरा : दिल्ली



ताउम्र भटका वो दर- बदर,
सितमगर को सुकूं न मिला !!
मिला सुकून ताबूत में, मगर
पहरे पर सितमगर ही मिला !!
.. विजय जयाड़ा
        4-5 दिन से घर में रजाई में बैठे-बैठे उबाऊ महसूस कर रहा था कल धूप निखर आई तो उत्साह और उमंग का संचार हुआ और पहुँच गया उस अभागे बादशाह के चिर शयन स्थल पर, जो जीवन भर, कपटी व विश्वासघाती भाइयों के चलते कभी चौखंडी (वाराणसी) के स्तूप में छिपने को मजबूर हुआ, कभी जान बचाने की खातिर गंगा में कूदा, कभी पर्सिया पहुँचने की चाह में बीहड़ जंगलों में भूखा प्यासा चलता रहा, आठ माह की गर्भवती पत्नी, (जो जन्म के बाद अकबर कहलाया) जिसे देखभाल की जरुरत थी, उस पत्नी को लेकर थार मरुश्थल की भीषण गर्मी में प्यासा लाचार सा भटकता रहा !!
       जी हाँ , आप बिलकुल सही समझे.. ये 1572 में, हुमायूँ की विधवा पत्नी हामिदा बानो बेगम के निजी धन, 15 लाख रुपये की लागत से निर्मित और मुग़ल साम्राज्य की नीव डालने वाले बदनसीब बादशाह हुमायूँ (6 मार्च 1508 – 22 फरवरी, 1556) का मकबरा है
        भारत में मुग़ल स्थापत्य की शरुआत इसी मकबरे से हुई कहा जाता है कि ताजमहल के निर्माण का प्रेरणास्रोत हुमायूँ का मकबरा ही है, भारत में यहीं से बाग़ में बने मकबरों में बादशाह को दफ़नाने की परंपरा शुरू हुई. ताजमहल की तरह चारबाग शैली में निर्मित ये मकबरा ताजमहल जैसा ही प्रतीत होता है . गर्भ गृह में हुमायूँ की कब्र है और साथ के कक्षों में दारा शिकोह समेत शाही परिवार की दस अन्य कब्रें हैं..
       1540 में भाइयों के विश्वासघात व शेरशाह सूरी के अधिपत्य के बाद हुमायूँ लगभग 15 साल निर्वासित जीवन जीने को विवश हुआ था. कठिन परिस्थितियों से गुजरते हुए 1555 में हुमायूँ ने अपना साम्राज्य पुन: प्राप्त किया. हुमायूँ को पढने का बहुत शौक था दीनापनाह (पुराने किले) में “शेर मंडल” लाइब्रेरी में हुमायूँ नियमित अध्ययन करने जाता था. एक दिन अजान की पुकार सुनकर हुमायूँ दोनों हाथो में पुस्तकें लेकर तेजी से सीढ़ियों से उतर रहा था तो ठोकर खाकर कई सीढ़ी नीचे आ गिरा यही घटना उसकी मौत का कारण बनी. कठिनायों से दुबारा प्राप्त साम्राज्य का उपभोग भी न कर सका !!
हुमायूँ के बारे में कहा जाता है .... “ हुमायूँ, जीवन भर ठोकरें खाता रहा और उसके जीवन का अंत भी ठोकर खाकर ही हुआ !!”
       पिता, बाबर को मरते समय दिए गए वचन कि.. " भाइयों के विरुद्ध कभी दंडात्मक कार्यवाही मत करना बेशक वे दंड के पात्र ही क्यों न हों".., को हुंमायूं ने जीवन भर निभाया. हुंमायूं को शालीन व्यक्तित्व के कारण मुगलों में इंसान-ए-कामिल (Perfect Man) की उपाधि मिली थी.
मृत्यु के बाद हुंमायूं को पुराना किला में दफना दिया गया लेकिन 1558 में हिन्दू राजा हेमू ने जब पुराना किला पर अधिकार कर लिया तो भागते मुग़ल सैनिकों ने ये सोचकर कि हेमु, हुमायूं की कब्र से बदसलूकी करेगा !! हुमायूँ को कब्र से निकालकर सरहिंद ले गए !! इस तरह मरने के बाद भी हुंमायूं को एक जगह ठहरकर विश्राम करने को न मिल सका !!!!
      1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद यहाँ छिपे बहादुर शाह जफर को 17 संबंधियों सहित इसी मकबरे से अंग्रेजों ने बंदी बनाकर मुगल साम्राज्य का सूरज अस्त कर दिया था।  इस मकबरे को यदि दिल्ली का लाल पत्थर से बना ताजमहल कह दिया जाय तो शायद अतिश्योक्ति न होगी !!

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