हम सबकी दिल्ली
यौवन पर चढ़ती
उजड़ जाती दिल्ली !
सल्तनत बदलती !
निखर जाती दिल्ली....
उजड़ जाती दिल्ली !
सल्तनत बदलती !
निखर जाती दिल्ली....
गरजती कभी खामोश
रहती थी दिल्ली !
शंहशाही इशारे पर
थिरकती थी दिल्ली...
अब शंहशाह रहे न
सल्तनत ही बाकी !
अब दिखती यहाँ..
सिर्फ रवानी जवानी....
दिल हिन्दुस्तां का
धड़कता यहाँ है
रौनक से लवलेज़
हर रोज़ खिलती....
कुछ खास दुनिया से
सबसे निराली !!
सरसब्ज सतरंगी..
हम सबकी दिल्ली ...
..विजय जयाड़ा
No comments:
Post a Comment