Saturday, 26 September 2015

चलती-फिरती बोलती किताबें; हमारे बुद्धिजीवी सम्मानित बुजुर्ग





चलती-फिरती बोलती किताबें; हमारे बुद्धिजीवी सम्मानित बुजुर्ग


            नरेन्द्र नगर में मौसम बहुत ठंडा था तो साले श्री गोपाल तड़ियाल ने दिन के भोजन के उपरान्त धूप में बैठने का आग्रह किया. छत पर पहुंचे ही थे कि क्यारी में टहल रहे बुजुर्ग की ओर इशारा करते हुए कहा... “ जीजा जी !! ये मेजर साहब हैं इनके बड़े भाई पंचांग लिखते हैं.”
           उत्तराखंड में पंडित, शुभ मुहूर्त आसानी से ज्ञात करने के लिए महीधरी पंचांग का बहुत पुराने समय से उपयोग करते आये हैं. जिज्ञासु मन में उत्सुकता उत्पन्न हुई और हम दोनों उनके घर की ओर बढ़े.. दूर से ही दूसरे बुजुर्ग भी गेट बंद करते आते दिखे.
           तस्वीर में बैठे बुजुर्ग धर्माधिकारी शक्तिधर जी हैं और खड़े बुजुर्ग, छोटे भाई सेवानिवृत्त मेजर मुरलीधर जी हैं.. बातों का सिलसिला प्रारंभ हुआ धर्माधिकारी शक्तिधर जी ने महीधरी कीर्ति पञ्चांग की पृष्ठभूमि को बताने के क्रम में बताया कि टिहरी के राजा कीर्ति शाह के काल में उनके पड़दादा महीधर जी, कर्णाटक से बदरीनाथ यात्रा पर आये थे. राजा उनके ज्ञान से प्रभावित हुए. राजा द्वारा महीधर जी को धर्माधिकारी की उपाधि व श्रीनगर के पास डांग गाँव में 19 नाली जमीन दी गयी. इस प्रकार मूल रूप से कर्णाटक का यह परिवार उत्तराखंड की संस्कृति में धर्माधिकारी महीधर डंगवाल के नाम से सदा के लिए रच-बस गया..
            राजा कीर्ति शाह ने प्रिटिंग प्रेस की दुर्लभता के युग में व्यक्तिगत प्रयासों से धर्माधिकारी महीधर जी द्वारा लिखित पंचांग को, श्री बग्तेश्वर प्रेस, बम्बई से छपवाना प्रारंभ किया वहां से ये पंचांग 31 वर्ष तक छपता रहा उसके बाद अब अवध प्रकशन , लखनऊ इसका प्रकाशन करता है. धर्माधिकारी महीधर जी ने अपने जीवन काल में ही 100 वर्षों के लिए हस्त लिखित पंचांग लिख कर रख दिए थे. धर्माधिकारी शक्तिधर जी ने बताया कि उनके दादा धर्माधिकारी रोहिणीधर जी को संगीत में अधिक रुचि थी लेकिन उनके पिता धर्माधिकारी मेदनी धर जी ने इस परम्परा को आगे बढाया उन्होंने ही राजशाही में स्कूलों में की जाने वाली लोकप्रिय प्रार्थना “ रक्षतु बोलांदा बद्री जननी सिंह वाहिनी .. “ लिखा था. वे शक्तिधर जी को गणितीय गणनाएं करने को दे दिया करते थे.इस प्रकार शक्तिधर जी का ज्ञान पुख्ता होता गया. 84 वर्षीय, धर्माधिकारी शक्तिधर जी ने भारतीय सेना व CRPF से सेवानिवृत्त हैं. 
              आज महीधरी कीर्ति पंचांग को बनारस के पंडित केदारनाथ कपूर लिखते हैं लेकिन प्रेस द्वारा प्रूफ रीडिंग के लिए पंचांग  धर्माधिकारी शक्तिधर जी के पास ही आता है... और उनकी संस्तुति पश्चात ही प्रकाशित होता है।
               प्रकाशन उपरांत पंचांग की प्रथम प्रति श्री बदरीनाथ जी को समर्पित की जाती है दूसरी प्रति टिहरी महाराजा (बोलान्दा बद्री) को समर्पित करने के उपरांत बाजार में विक्रय हेतु जारी करने की परंपरा 131 वर्ष से आज भी निरंतर चली आ रही है.. साथियों, बातचीत के क्रम में राजशाही के दौर की कई ऐसी जानकारियों से रूबरू हुआ जिनसे मैं वाकिफ न था .. 



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