Saturday, 5 September 2015

लाल किला : वैभव आगमन व निर्गमन द्वार


लाल किला : वैभव आगमन व निर्गमन द्वार


" एक दिन राजा हरिश्चंद्र घर, संपत्ति मेरु समान,
एक दिन जाय स्वपच घर बिक गयो अम्बर हरत मसान
    
होत न एक समान सब दिन सब दिन होत न एक समान.."
       
        सन 1648 !! लाल किले का निर्माण पूर्ण हुआ !! शाहजहाँ ने बड़े गर्व और शानो शौकत से अपनी नयी राजधानी शाहजहानाबाद के किला-ए-मुबारक (लाल किला) के यमुना की तरफ बने इस गेट की सीढियां चढ़कर शक्ति और वैभव के प्रतीक लाल किले में प्रवेश किया !!
       परिदृश्य बदला !! समय मुगलिया सल्तनत के विपरीत हो चला !! 1857 में अंग्रेजों ने लाल किले पर चांदनी चौक की ओर से लाहौरी गेट पर हमला बोला, 82 वर्षीय वृद्ध और हर तरह से टूट चुके, अंतिम मुग़ल बादशाह व शायर बहादुर शाह जफ़र, भयाक्रांत मन: स्थिति में लाल किले के पिछवाड़े से "खास महल" और "रंग महल" से लगे इसी गेट से, जो कि पीछे यमुना की तरफ खुलता था, भागने को विवश हुए !! लेकिन चंद घंटों में ही, हुँमायु के मकबरे से 17 रिश्तेदारों समेत, अंग्रजों द्वारा बंदी बना लिया गए ...     उसके आगे की कहानी से कौन विज्ञ नहीं !!! बहादुर शाह जफ़र मातृभूमि (भारत) में दो गज जमीन के लिए अंतिम सांस तक तड़पते रहे !! लेकिन नसीब न हुई.. बादशाह जफर की चर्चा हो और उनकी शायरी का जिक्र न हो !! इस शायराना शख्सियत के साथ और भी अधिक नाइंसाफी ही होगी !! .
                 अपनी बदनसीबी को जफ़र ने बहुत ही मार्मिक अल्फाजों में बयां किया ....

" दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
दिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार में
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
   दो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कूए-यार में "


और अंत में जीवन का सत्य उनके ही शब्दों में ..

या मेरा ताज गदायाना बनाया होता
अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने
   क्यों ख़िरदमंद बनाया न बनाया होता...
       अर्थात मुझे बहुत बड़ा हाकिम बनाया होता या फिर मुझे सूफ़ी बनाया होता, अपना दीवाना बनाया होता लेकिन बुद्धिजीवी न बनाया होता.
 आज ये दरवाजा ताला बंद है.." अब कोई गुलशन न उजड़े, अब वतन आजाद है .... "
   हर इतिहास से जुड़ी पोस्ट के अंत में एक ही बात कह कर अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ .... कि ...

" सीख हम बीते युगों से नए युग का करें स्वागत ... " 

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