ईशा खान का मकबरा : दिल्ली
तामीर की जाती हैं इमारतें
किसी का वजूद कायम रखने में !!
इमारतें भरभरा कर गिर जाती हैं मगर
मिटता नहीं वज़ूद जलजलों और तूफानों में !!
.... विजय जयाड़ा
लीजिये ! फोटो में क्या-क्या कवर करना है !! 9 - 10 साल की उम्र के अनजान बच्चे को बता ही रहा था कि सम्यक बाल छायाकार साहब ने अचानक उत्साह में .. दे मारा क्लिक !!
जब भी किसी ऐतिहासिक स्थान पर जाता हूँ वहां की हर कृति को अपने रिकॉर्ड के लिए कैमरे मैं कैद कर लेता हूँ . इस क्रम में गर्मी – सर्दी – धूप – छाँव – भूख – प्यास – चढ़ाई- उतराई मेरे आड़े नहीं आते. हाँ .. यदि कोई साथ में हो तो वो जरूर थक जाता है और अगली बार मेरे साथ चलने से तौबा कर लेता है !!
अकेले होने पर तब बहुत समस्या आती है जब क्लिक करते-करते सम्बंधित स्थान का स्वयं-साक्षी बनने का लोभ मन में घर करने लगता है !! फिर तलाशना होता है !!.. किसी क्लिक करने वाले महानुभाव को !! क्लिक करने में विदेशी अधिक उदार ह्रदय होते हैं, शायद कैमरा संचालन सहजता के कारण !! विदेशी बहुत सलीखे से मेरा वांछित फोटो ही नहीं लेते बल्कि मेरे पूर्ण संतुष्ट होने पर ही आत्मीयता के साथ बाय करते हैं.
अन्यथा न लीजियेगा कई बार ऐसे अवसर भी आये जब स्वदेशी पर्यटकों ने ऐसे भाव प्रदर्शित किये जैसे मैं उन्हें क्लिक करने के लिए कैमरा नहीं !! बल्कि पिन खींचने के लिए ग्रेनेड बम पकड़ा रहा हूँ !! या मैं उनसे कोई घटिया काम करने का निवेदन कर रहा हूँ !! अर्थात एक विशेष प्रकार का " एटिट्यूड " दिखाते हैं !! कोई विदेशी न मिले तो क्लिक करने के लिए मैं किसी समझदार तरुण को उपयुक्त समझता हूँ , क्योंकि वह मेरी बात ठीक से समझना चाहता है ..
बहरहाल ये तस्वीर हुमायूँ के मकबरे से लगी, शेरशाह सूरी के दरबार में प्रभावशाली अफगान सेनापति ईशा खान नियाजी की विशिष्ट अष्टभुज आकृति में बने मकबरे की है..ईशा खान ने दिल्ली और आगरा से मुगुलों को खदेड़ने में मुख्य भूमिका निभाई थी. मकबरे के चारों तरफ अष्टभुज आकृति में ही बगीचे बने हैं. ईशा खान ने इस मकबरे का निर्माण अपने जीते-जी 1547 में करवा दिया था.अत: ये निर्माण हुमायूँ के मकबरे से भी 20 साल पहले हो चुका था.
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक इस मकबरे के अहाते में पूरा एक गाँव बस्ता था जो मुख्यत: मुग़ल वंशज थे. लेकिन वायसराय लॅार्ड कर्जन ने ऐतिहासिक इमारतों के जीर्णोधार के समय सभी अतिरिक्त संरचनाये हटा दी थी .
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