स्वातंत्र्य वीर धाम
“ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक “ सलीमगढ़, लाल किला
ऐतिहासिक स्थल हमें उचित और अनुचित का बोध कराते हैं, इन स्थलों पर पहुंचकर हम यहाँ की प्राचीनता, वैभव, वास्तु, स्थापत्य तत्कालीन व्यवस्था, सम्बंधित तथ्यों व घटनाओं को देख-जान कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं, लेकिन ये भी सत्य है कि इन स्थलों में हम अक्सर अपनापन अवश्य तलाशते हैं अर्थात ऐसा कुछ जिस पर हमें गर्व हो.
आइये, आज ऐसे ही गुमनाम ऐतिहासिक स्थल पर चलते हैं जहाँ की प्राणवायु आपके हृदयतल को झंकृत कर देगी और ह्रदय का हर स्पंदन, जोश व गर्व से गुन-गुनाने को मजबूर कर देगा ..
“ कदम-कदम बढ़ाये जा ... ख़ुशी के गीत गाये जा ...”
और कदम से कदम मिलाती आजाद हिन्द फौज के जांबाज सिपाहियों की टुकड़ी से सलामी लेते नेता जी सुभाष चंद्र बोस का दृश्य मानस पटल पर बरबस ही उभर आयेगा !!
जी हाँ.. आज आजाद हिन्द फ़ौज (INA) के स्वातंत्र्य वीरों को समर्पित “ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक “ सलीमगढ़, लाल किला की ही बात कर रहा हूँ. लेकिन यह बताने में दुःख होता है कि आजादी के लिए यातनाएं सहने वाले और हँसते-हँसते फांसी के फंदे को स्वीकारने वाले, हमारे वर्तमान के लिए अपना भविष्य दाँव पर लगाने वाले स्वातंत्र्य वीरों के इस धाम की चमक, लाल किला की मुग़ल कालीन भव्य इमारतों की चकाचौंध में धूमिल होती जान पड़ती है. लाल किला में लगभग 10 हजार पर्यटक हर रोज आता है लेकिन यहाँ शायद 10 पर्यटक भी नहीं पहुँचते !!
1546 में सूर वंश के सलीम शाह द्वारा बनवाया गया सलीमगढ़ किला, लाल किले के उत्तरी पूर्वी छोर से एक छोटे से मेहराबदार सेतु द्वारा लाल किले से जुड़ा है. मुग़ल काल में इस किले को राजकीय बंदियों को रखने में इस्तेमाल किया जाता था.यह लाल किला परिसर का ही भाग है औरंगजेब ने मुराद बक्श को और साहित्य,संगीत व काव्य प्रेम के कारण बड़ी बेटी जेबुनिशा को 21 वर्ष, मृत्यु तक यहीं कैद रखा था. हुमायूँ ने निर्वासन उपरांत दिल्ली पर दुबारा अधिकार के क्रम में यहाँ तीन दिन डेरा जमाये रखा. 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति बनाने के लिए बादशाह बहादुर शाह जफ़र यहाँ मीटिंग करते थे और इस किले की दीवार पर चढ़कर अपनी तोपों को अंग्रेजों पर निशाना साधते देखते थे. रंगून निर्वासन से पूर्व बदनसीब बादशाह जफ़र को कुछ समय यहाँ कैद रखा गया.
1945 में यहाँ आजाद हिन्द फ़ौज के सिपाहियों व अधिकारियों को मुग़ल काल में बनाये गयी इन दमघोटू (तस्वीर में) कोठरियों में बंदी बनाकर रख कर उन पर देश द्रोह का मुकदमा चलाया गया. भीषण यातनाओं व बीमारी के चलते कई स्वातंत्र्य वीर वीरगति को प्राप्त हुए. 1995 में इस स्थल को “ स्वतंत्रता सेनानी स्मारक “ घोषित कर दिया गया. उस समय बंदीगृह के रूप में प्रयोग की जाने वाली दो बैरक आज संग्रहालय के रूप विकसित की गयी हैं. यह क्षेत्र वनाच्छादित व सुनसान है मेरे जैसा जिज्ञासु ही शायद कोई यहाँ पहुँचता हो. शायद !!! सामान्यजन निर्जनता के कारण ही सुरक्षाकर्मी, मुझे और मेरे साथी को बहुत गौर से खोजी निगाहों से देख रहे थे !! बंदीगृह में ढेर सारे चमगादड़ों का साम्राज्य दिखा..
कहा जाता है कि चांदनी रात में काला गाउन पहले मुग़ल शहजादी जेबुनिशा की प्रेतात्मा स्वलिखित कवितायेँ गाती देखी जाती है और आजाद हिन्द फ़ौज के बंदी सैनिकों की यातनाओं के दौरान चीखें व कराह आज भी इस निर्जन सुनसान वातावरण के सन्नाटे को तोड़ती सुनी जाती हैं.
यदि आप लाल किले में अपनापन तलाश रहे हैं तो मुग़ल कालीन भवनों को निहारने से पहले छत्ता बाजार पार करते ही नौबत खाने से पहले बाएं हाथ की तरफ, लाल किला बावड़ी व सलीम गढ़ किले की तरफ निर्जन क्षेत्र की ओर मुड़ जाइए. स्वातंत्र्यवीर निर्जनता में आपको पाकर प्रसन्न होंगे और देशप्रेम का आशीर्वाद अवश्य देंगे ...वापसी में बेशक लाल किले के मुग़ल कालीन वैभव को निहारना न भूलियेगा ..
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