आध्यात्म व प्रकृति का अनूठा संगम
"झिलमिल गुफा " ऋषिकेश
ऋषिकेश , मणिकूट पर्वत स्थित , प्रसिद्ध नीलकंठ महादेव मंदिर से सभी परिचित हैं. यदि लक्ष्मण झूला से चलें तो नीलकंठ मंदिर पहुँचने से करीब आधा किमी पहले बायीं तरफ एक सड़क निकलती है उस पर 4-5 किमी कार या बाईक से चलने और फिर लगभग आधा घंटा पैदल चलने पर आप इन गुफाओं से साक्षात्कार कर सकते हैं.
मणिकूट पर्वत, कदली वन की इन गुफाओं में “ झिलमिल गुफा “ जिसका नाम झिलमिल बाबा द्वारा यहाँ तपस्या करने के कारण पड़ा, मुख्य आकर्षण का केंद्र है. पैदल मार्ग प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है लेकिन जंगल से होकर है. जल अवक्षेपित खनिजों से प्राकृतिक रूप से बनी यह गुफा कुदरत की अप्रतिम चित्रकारी जान पड़ती है जल प्रवाह के साथ आये खनिजों के अवक्षेपण से गुफा का आतंरिक भाग दृष्यांकित सा लगता है गुफा की छत, छिद्र्नुमा खुली है जो वायु के सुचारू आवागमन को सुनिश्चित करती है, इस छिद्र से रात्री समय में बादल रहित आसमान में तारों को निहारने का अपूर्व आनंद प्राप्त होता है.
प्राचीन समय में ऋषि मुनि निर्विघ्न तपस्या हेतु हिमालय में निर्जन स्थान व गुफाओं का चयन करते थे. गुरु गोरख नाथ जी द्वारा इस गुफा में तपस्या किये जाने के कारण यह तपस्या गोरखनाथ जी को समर्पित है, गुफा में उनकी मूर्ती है और कुछ सन्यासी रहते हैं.
धार्मिक भावना से हर श्रृद्धालु नीलकंठ मंदिर जाना चाहता है लेकिन ये गुफा भी कम पवित्र नहीं .. साथ ही यहाँ प्रकृति और आध्यात्म के संगम स्नान से हम स्वयं को हल्का अवश्य महसूस कर सकते हैं.
मार्ग में चाय-पान की अस्थायी दुकानें व रात्री विश्राम के लिए सस्ती व्यवस्था है. यदि मुझे ज्ञात होता कि यहाँ रात रुकने की व्यवस्था है तो शोरगुल से दूर अनुपम प्रकृति के सानिध्य में एक रात अवश्य बिताता .. यदि आप ऋषिकेश, नीलकंठ मंदिर दर्शन करना चाहते हैं तो “ झिलमिल गुफा “ भी अवश्य जाइयेगा .. यहाँ से आगे पांच मिनट पैदल चलकर आप गणेश गुफा के दर्शन भी कर सकते हैं..
जानकारी के अभाव में नीलकंठ आने वाले यात्रियों में से बामुश्किल 4-5 % यात्री यहाँ आ पाता है।
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