रहस्यमय (Haunted) म्यूटिनी मेमोरियल ( Mutiny Memorial ) :
सैन्य विद्रोह स्मारक, अजीत गढ़. नयी दिल्ली
पिछले दिनों दिल्ली में प्रदूषण के कारण स्कूलों में छुट्टियां घोषित हुई
लेकिन जुखाम-बुखार ने इस कदर घेरा की घर पर ही रहना पड़ा. छुट्टियों में दिन
भर घर पर रहते हुए उकता गया तो बुखार में ही हिम्मत कर चल दिया एक ऐसे
रहस्यमय स्मारक की ओर ! जिसे दिल्ली के भूतिया (Haunted) स्थानों में शुमार
किया जाता है !जी हाँ ! कमला नेहरु रिज वन क्षेत्र में रानी झाँसी मार्ग पर बाड़ा हिंदुराव अस्पताल के दक्षिण में 500 मी. की दूरी पर सुनसान रिज इलाके में एक ऐसा ही ऐतिहासिक रहस्यमय किस्सों को समेटे हुए स्मारक है .. " म्यूटिनी मेमोरियल " अर्थात सैन्य विद्रोह स्मारक, अब परिवर्तित नाम " अजीत गढ़ " .
30 मई से 20 सितम्बर सन 1857 के अंतराल में ब्रिटिश राज की ज्यादातियों के कारण उपजे जन असंतोष, जिसे व्यापकता व उग्रता के कारण भारत की आजादी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है, को दिल्ली में अंग्रेजों की दिल्ली फील्ड फ़ोर्स द्वारा ब्रिगेडियर जनरल जार्ज निकोल्सन के नेतृत्व में कुचल दिया गया. इसके बाद पुरानी दिल्ली के प्रवेश द्वारों, कश्मीरी गेट व मोरी गेट पर निगरानी रखने के उद्देश्य से इस सुनसान रिज क्षेत्र में सैनिक छावनी बनायीं गयी थी..
अंग्रेजों द्वारा पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट के माध्यम से जल्दबाजी में सन 1863 में “टेलर बैटरी “ ( तोपखाना इकाई ) के स्थान पर मजबूत पत्थर की चट्टान पर पांच फुट ऊंचे चबूतरे पर लाल बलुआ पत्थर से 29.5 मी. ऊंची, इस आलंकारिक अष्ट कोणीय मीनार को 8 जून से 7 सितम्बर 1857 के दौरान स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने में अंग्रेजों की दिल्ली फील्ड फ़ोर्स की तरफ से लड़े और मारे गए, घायल, व लापता, 2163 भारतीय तथा अंग्रेज अफसर व जवानों की औपनिवेशिक शक्तियों के प्रति वफादारी, बहादुरी व त्याग को भविष्य में स्मरण करने उद्देश्य से बनाया गया था. मीनार के अष्ट फलकों में लगे संगमरमर के शिलापट्टों पर अफसर व जवानों का विवरण अंकित है. मीनार में प्रवेश वर्जित है लेकिन पश्चिमी दिशा से प्रवेश कर घुमावदार सीढ़ियों के माध्यम से ऊपर तक पहुंचा जा सकता है. मीनार के शीर्ष पर क्रॉस बना हुआ है.
औपनिवेशिक हिताकांक्षाओं को पोषित करते इस ऐतिहासिक संरक्षित स्मारक में अंग्रेजों की सेना, दिल्ली फील्ड फ़ोर्स के विरुद्ध लड़ रहे भारतीय नागरिकों को " शत्रु " के रूप में प्रस्तुत किया गया था लेकिन स्वतंत्रता उपरांत 15 अगस्त 1972 के दिन भारत सरकार द्वारा स्वतंत्रता की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर इस स्मारक पर नए शिलापट्ट लगाकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रहे भारत माता के सपूतों को स्वतंत्रता के अमर शहीदों के रूप में उत्कीर्ण कर के सम्मान किया गया.
रहस्यमय किस्सों से जुड़े होने के कारण यह स्मारक पर्यटकों के बीच कौतुहल का विषय भी बना रहता है ! ये किस्से हकीकत है या मन का भ्रम !! यह कह पाना संभव नहीं ! इन प्रचलित किस्सों में यहाँ सैनिक वर्दी में अंग्रेज सैनिक अफसर राहगीरों से सिगरेट सुलगाने के लिए लाइटर मांगने और सिर कटी अंग्रेज मानव आकृति देखे जाने की बात कही जाती है.. इस सम्बन्ध में “ आज तक “ कर्मियों ने इस स्मारक से जुड़े भूतिया रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश में इस स्मारक पर रात और दिन गुजारा ! लेकिन वे भी रहस्यों की पुष्टि में तथ्य न जुटा सके ! स्मारक के गार्ड से बातचीत करने पर गार्ड ने भी इस तरह की बातों को सिरे से खारिज किया.