Sunday, 20 November 2016

" हनूज़ दिल्ली दूरअस्त " ..." दिल्ली अभी दूर है "...

" हनूज़ दिल्ली दूरअस्त " ..." दिल्ली अभी दूर है "...

        एक बहुत ही प्रसिद्ध लोकोक्ति है, “दिल्ली अभी दूर है” अर्थात “ मंज़िल अभी दूर है ”.यदि अतीत में भ्रमण किया जाय तो इस लोकोक्ति के गर्भ में एक ऐतिहासिक प्रसंग है जो सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया से सम्बंधित है...
       1320 ईसवीं के आसपास दिल्ली में गयासुद्दीन तुगलक की सल्तनत थी. मगर दिल्ली, तुगलकों से ज्यादा सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया और उनके शागिर्द अमीर खुसरो के नाम से जानी जाती थी. अमीर खुसरो, तुगलक के दरबारी हुआ करते थे. तुगलक, खुसरो को चाहता था लेकिन औलिया की लोकप्रियता से चिढ़ता था. तुगलक सोचता था कि संत औलिया के इर्दगिर्द बैठे लोग उसके खिलाफ साजिशें रचते हैं.
       एक बार तुगलक युद्ध से दिल्ली लौट रहा था. रास्ते से ही उसने सूफी हजरत निजामुद्दीन तक संदेश भिजवा दिया कि उसकी वापसी से पहले औलिया दिल्ली छोड़ दें।
      
खुसरो को ये सब अच्छा न लगा ! वे औलिया के पास पहुंचे. तब औलिया ने उनसे कहा कि “ हनूज़ दिल्ली दूरअस्त.” अर्थात दिल्ली अभी दूर है. ग्यासुद्दीन तुगलक की पश्चिम बंगाल और उत्तरी बिहार से विजय के उपरांत दिल्ली वापसी में उसके पुत्र जुना खान ने स्वागत के लिए, कारा, उत्तरप्रदेश में. लकड़ी का एक काफी बड़ा मंच बनवाया गया था.अचानक आये भयंकर अंधड़ से उसका चंदवा (छतरी ) गिर गया. इसी के नीचे दब कर ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गई. 
      इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ व मोरक्को के यात्री इब्न बबूता ग्यासुद्दीन की इस तरह हुई मृत्यु को पुत्र जूना खान के द्वारा षड्यंत्र के तहत हुई मानते हैं.
       इस प्रकार संत औलिया साहब के कहे अनुसार गयासुद्दीन तुगलक के लिए दिल्ली दूर ही रही और वो दिल्ली में जीवित वापस न आ सका !!

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