Sunday, 20 November 2016

“ किल्ली तो ढिल्ली भई, तोमर हुए मतिहीन “ दिल्ली का इन्द्रप्रस्थ से नयी दिल्ली तक का सफ़र



“ किल्ली तो ढिल्ली भई, तोमर हुए मतिहीन “

दिल्ली का इन्द्रप्रस्थ से नयी दिल्ली तक का सफ़र

        दिल्ली की सियासत पर काबिज होने के लिए राजनीतिक दल अपना सब कुछ दाँव पर लगा देते हैं.. दिल्ली ने कभी अपने-पराये का भेद नहीं किया.जो भी यहाँ आया उसको दिल्ली ने गले लगाया ..शायद इस स्वाभाव के कारण भी दिल्ली शुरू से ही सबके आकर्षण का केंद्र रही है. चलिए आज दिल्ली नाम की विकास यात्रा पर ही चर्चा की जाय ..
       महानगर दिल्ली की विकास यात्रा की डोर, पांडवों के इंद्रप्रस्थ से प्रारंभ होकर अनेक राजाओं, सुल्तानों, सल्तनतों और बादशाहों के दौर से गुजरती हुई वर्तमान में रायसीना की पहाड़ियों, नयी दिल्ली तक पहुँचती है. इस विकास यात्रा में पहली दिल्ली का नाम लाल कोट (1000), दूसरी दिल्ली का नाम सिरी (1303), तीसरी दिल्ली का नाम तुगलकाबाद (1321), चौथी दिल्ली का नाम जहांपनाह (1327), पांचवी दिल्ली का नाम फिरोजाबाद (1354), छठीं दिल्ली का नाम पुराना क़िला (शेरशाह सूरी) और दीनपनाह (हुमायूँ;) दोनों उसी स्थान पर हैं जहाँ पौराणिक इंद्रप्रस्थ होने की बात कही जाती है (1538), सातवीं दिल्ली का नाम शाहजहांनाबाद (1639) और आठवीं दिल्ली का नाम नई दिल्ली (1911) के रूप में बदलते नामों का सफर भी जारी रहा.
       नयी दिल्ली से पहले के सात नाम आज भले ही खंडहर हो चुके इमारतों व भवनों के साथ मिट गए हैं, पर आज भी लोक-स्मृति में दिल्ली के बसने और उजड़ने की कहानी बयाँ करते हैं.
      अब इस महानगर के नाम दिल्ली होने पर चर्चा की जाय. इस सम्बन्ध में इतिहासकार एक मत नहीं हैं. तोमर वंश के शासन काल में किले में एक लोहे के खम्बे के सम्बन्ध में ज्योतिषियों की भविष्यवाणी थी कि जब तक खंबा है साम्राज्य बना रहेगा लेकिन तोमर वंश के राजा धव ने उस खम्बे के ढीला होने पर उसको बदलवा दिया और इलाके का नाम ढ़ीली रख दिया. इसके बाद तोमर साम्राज्य का पतन भी शुरू हो गया और आम जन में एक मशहूर लोकोक्ति मशहूर हुई, “ किल्ली तो ढिल्ली भई, तोमर हुए मतिहीन “ माना जाता है कि इसी लोकोक्ति से दिल्ली को उसका नाम मिला.
        ये भी माना जाता है कि तोमरवंश के दौरान जो सिक्के बनाए जाते थे उन्हें देहलीवाल कहा करते थे. इसी से दिल्ली नाम पड़ा.
         ईसा पूर्व 50 में मौर्य राजा थे जिनका नाम था धिल्लु. उन्हें दिलु भी कहा जाता था. माना जाता है कि यहीं से अपभ्रंश होकर नाम दिल्ली पड़ गया।
इस तरह तोमरों से जुड़ी लोकोक्ति मशहूर होती गई और किल्ली, ढिल्ली और दिलु अपभ्रंश होते-होते शहर का नाम दिल्ली हो गया जो कालांतर में अंग्रेजों द्वारा नई दिल्ली कर दिया गया..
         दिल्ली' या 'दिल्लिका' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया है. इस शिलालेख का समय 1170 इसवीं निर्धारित किया गया है.


1 comment:

  1. विजय साहब आपने दिल्ली के इतिहास को समझने और समझाने में काफी मेहनत की है जो क़ाबिल ए तारीफ़ है। दिल्ली के कई रोचक किस्से बयां किये और शहरों के शहर दिल्ली की दास्तां को परत दर परत बयाँ किया । अगर गलत नहीं तो आपकी यह तस्वीर फ़िरोज़ शाह कोटला में लगे अशोक पिलर के नीचे बने गलियारे की है ।

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