लाल कोट से प्रारंभ हुए दिल्ली के सफ़र का पांचवां पड़ाव
फ़िरोज़ शाह कोटला, किला, दिल्ली..दिल्ली के सफ़र के पांचवें पडाव अर्थात पांचवी दिल्ली, फिरोजाबाद में सन 1354 के दौरान फिरोज तुगलक द्वारा तामीर करवाया गया फिरोज शाह कोटला किला अपनी निर्माण सुन्दरता के कारण लोगों में कौतुहल व आकर्षण का केंद्र हुआ करता था. दूर-दूर से देखने आने वाले लोगों की सड़कों परआवा-जाही लगी रहती थी. इसके महलों व भवनों की सुन्दरता को मानो सन 1398 में नजर लग गयी जबआक्रान्ता तैमूर लंग के कहर के बाद ये खूबसूरत किला, खंडहर, उजाड़ और वीरान होता चला गया. उस समय इस शहर की आबादी डेढ़ लाख हुआ करती थी. मुगलों ने लाल किला निर्माण के लिए निर्माण सामग्री के लिए पुराना किला का रुख किया लेकिन हुमायूँ के लिए बदनसीब साबित हुआ पुराना किला, मनहूसी के साए के चलते स्वयं को बचा सकने में कामयाब हो गया !!
इसके बाद लाल किला निर्माण सामग्री की दृष्टि से मुगलों की नजर, तैमूर द्वारा तबाह फिरोज शाह कोटला किले पर पड़ी और इस किले की बची-खुची उपयोगी निर्माण सामग्री लाल किला निर्माण में प्रयोग में लायी गयी. आज यहाँ जगह-जगह पत्थरों के ढेर, ऊंची-ऊंची ढहती दीवारें और महल के निशान उनकी बुनियादें ही इस किले के अतीत में अस्तित्व की गवाह हैं !!
खैर ! इस किले से जुडी रोचक प्रसंग की तरफ रुख करता हूँ.. मुग़ल काल में आम जनता का मनोरंजन भांड व नक्काल किया करते थे. विचित्र व रोचक कपडे पहनकर ये नक्काल, वाद्य यंत्रों के साथ, गली-कूचों सड़कों और चौराहों पर अपने गीतों व भाव भंगिमाओं से जनता का मनोरंजन किया करते थे. इनके गीतों में जहाँ एक ओर हंसी मजाक का पुट होता था तो वहीं किस्से-कहानियां, सच्चाई के साथ-साथ हाकिमों द्वारा लिए गए गलत फैसलों पर व्यंग्य भी होता था. इस कारण कभी-कभी हाकिम नाराज हो जाया करता था.
एक बार मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला ने नाराज होकर सभी भांड व नक्कालों को अपनी हुकूमत शाह जहानाबाद छोड़ने का आदेश दे दिया. अब शाहजहानाबाद में कोई भांड व नक्काल न रहा !
एक बार तुर्कमान गेट की तरफ से हाथी पर सवार बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला जब इधर से गुजर रहा था तो उसने इन्हीं खंडहरों पर ऊंचाई पर बैठे, अपने चेलों के साथ ढोलक बजाते एक नक्काल को देखा ! बादशाह ने आश्चर्य से उससे वहां बैठे होने का कारण पूछा तो चतुर हाजिरजवाब नक्काल ने जान बख्शने की फ़रियाद करते हुए कहा “ जहाँपनाह ! आपकी हुकूमत पूरी दुनिया में है .. जहाँ भी जाते हैं आपकी हुकूमत नजर आती है ! अब भला हम जाएँ तो जाएँ कहाँ.. हार कर हमने जन्नत का रुख किया .. लेकिन अभी पहली सीढ़ी ही चढ़े थे कि सीढ़ी खत्म हो गयी ! इसलिए यहाँ बैठे हैं !!
चतुर नक्काल का जवाब सुनकर बादशाह बहुत खुश हुआ और उसने सभी नक्कालों व भांडों को शाहजहानाबाद (पुरानी दिल्ली) में वापस लौट आने की अनुमति दे दी.
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