सर... चकराता !!... चकराता, देहरादून, उत्तराखंड
स्थानीय बस सेवा द्वारा देहरादून से विकासनगर और फिर विकासनगर से जीप द्वारा बादलों के फाहों में लिपटे, अपेक्षाकृत छोटे व खूबसूरत शहर, चकराता, पहुंचा. जीप की सभी सवारियां उतरकर चालक को किराया देने लगी तो मैंने भी किराया राशि चालक की तरफ बढ़ाई लेकिन चालक नहीं ली और कहा " आप इस क्षेत्र में नए हैं, पहले आपको कनासर जाने वाली किसी उचित गाड़ी में बिठा लूँ फिर आपसे किराया ले लूँगा " इस तरह सरल व सहज आत्मीय व्यवहार से स्थानीय चालक ने मेरा दिल जीत लिया. चकराता में, 27 किमी. दूर कनासर पहुँचने के लिए वाहन की प्रतीक्षा करने के साथ-साथ आदतन छायांकन और स्थानीय जानकारियाँ भी जुटाने लगा.
समुद्र तल से लगभग 7000 फीट ऊँचाई पर स्थित इस खूबसूरत स्थान के नामकरण के सम्बन्ध में एक रोचक वाकया प्रचलित है। कहा जाता है कि गर्मी से तंग आकर ब्रिटिश सेना के कर्नल ह्यूम जब देहरादून से लगभग 95 किमी. की दूरी पर शहर की भीड़-भाड़ से दूर, मनोरम पहाडियों और घने जंगलों से घिरे, इस अल्प ज्ञात स्थान पर पहुंचे तो जिज्ञासावश उन्होंने पेड़ की छाँव में बैठे अस्वस्थ स्थानीय निवासी से इस स्थान का नाम पूछा. स्थानीय निवासी अंग्रेज की बात ठीक से न समझ सका ! उसने सोचा ! शायद अंग्रेज उसका हाल पूछ रहा है तो उसने अंग्रेज से उसके ही लहजे में उत्तर दिया, “ सर .. चकराता “
कर्नल ह्यूम को यह प्रदूषण मुक्त स्थान इतना पसंद आया कि वे यहीं के होकर रह गए और उन्होंने इस स्थान को ..” चकराता “ नाम दे दिया. इसके बाद ब्रिटिश आर्मी द्वारा इस स्थान का उपयोग समर आर्मी बेस के रूप में किया जाने लगा.
हालांकि प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण चकराता, सैन्य छावनी क्षेत्र होने के कारण पर्यटन मानचित्र पर उचित स्थान नहीं बना पाया है लेकिन ऊंचे-ऊंचे सघन शंकुवाकार देवदार वृक्षों की पहाड़ियों से घिरा ये क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य में किसी भी स्तर पर मसूरी से कम नहीं है.
यहाँ साहसिक पर्यटन के शौक़ीन सैलानियों के लिए स्थानीय निवासियों द्वारा आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध हैं. एशिया का सबसे लम्बा और गोलाई वाला देवदार वृक्ष भी इसी क्षेत्र में है. सर्दियों में बर्फ़बारी से सफ़ेद चादर में लिपट जाने के बाद इस क्षेत्र का सौन्दर्य देखते ही बनता है.
शांति प्रिय पर्यटकों में लोकप्रिय, चकराता से 5 किमी. दूर 50 मी. ऊंचा झरना, टाइगर फॉल है. प्रकृति को करीब से देखने ले लिए 26 किमी. की दूरी पर स्थित, “ कनासर ‘ की शांति भी बहुत कुछ बयां करती है. चकराता से महाभारत काल से जुड़े लाखमंडल, मोईगड झरना, रामताल गार्डन, बुधेर गुफा और 16 किमी. दूर समुद्र तल से 9500 फीट की ऊँचाई पर स्थित ‘ देववन ' से हिमालय की विशाल पर्वत श्रंखलाओं को निहारने का आनंद लिया जा सकता है
चकराता पहुँचते हुए महाभारत व मौर्य काल से जुड़े कालसी में सम्राट अशोक के शिलालेख व पुरावशेषों का अवलोकन भी किया जा सकता है
चकराता प्रवास के लिए मार्च से जून और अक्टूबर से दिसम्बर उपयुक्त समय है। जून के अंत और सितम्बर के मध्य में यहाँ वर्षा होती है। अधिक ऊँचाई पर होने से यहाँ पर बर्फ़बारी के कारण सर्दियों में काफ़ी ठण्डी होती है। वन विभाग की साइट द्वारा गेस्ट हाउस बुक किया जा सकता है ठहरने के होटल कम होने के कारण यहाँ यहाँ रहने पर अधिक व्यय संभव है यदि आप एक दो लोग हैं तो स्थानीय निवासी आपको घरों पर कम दाम पर आवासीय सुविधा उपलब्ध करवा सकते हैं.
कुछ देर रुकने पर " पलायन एक चिंतन " दल के अन्य सदस्य भी अपने-अपने निजी वाहनों से चकराता पहुँच गए.. दल के संयोजक श्री रतन सिंह असवाल जी ने मुझे देख लिया. मेरी वाहन व्यवस्था हो चुकी थी अतः जीप चालक ने मुझसे किराया ले लिया. ठण्ड का आभास हो रहा था ! असवाल जी, श्री जागेश्वर जोशी जी व श्री विनय जी के साथ चाय पीकर हम एक ही गाड़ी से अपने अंतिम पड़ाव, कनासर, की ओर चल दिए।
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