आस्था, श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक : श्री कंडार देवता मंदिर ( Kandar Devta Temple ), कलेक्ट्रेट, उत्तरकाशी ( Uttarkashi ),उत्तराखंड
1985 से 92 तक उत्तरकाशी में निवास किया उसके बाद कई बार उत्तरकाशी जाना हुआ लेकिन कलक्ट्रेट उत्तरकाशी के मुख्य द्वार पर स्थापित श्री कंडार देवता मंदिर के पास से कई बार गुजरने के बावजूद भी दर्शन का सौभाग्य न मिल सका ! लेकिन अबकी बार शायद श्री कंडार देवता को मंजूर था. दो बजे उत्तरकाशी पहुंचे तो भूख लगने लगी . सोचा !! भोजन से पूर्व, श्री कंडार देवता के दर्शन कर लिए जाएँ ! मंदिर के पास ही भंडारी होटल में बैग रखा और मंदिर में पहुँच गए.
श्री कंडार देवता से जुडी कथा के अनुसार राजशाही के समय यही कलक्ट्रेट के पास खेत पर हल लगाते हुए एक किसान को अष्टधातु से बनी अद्भुत प्रतिमा प्राप्त हुई. राज्य की संपत्ति मानकर किसान ने प्रतिमा को राजा को सौंप दिया तत्पश्चात राजा ने इस प्रतिमा को अपने देवालय में रखी अन्य मूर्तियों के नीचे स्थान दिया. सुबह जब राजा देवालय में पूजा करने पहुंचे तो उन्होंने इस प्रतिमा को अन्य मूर्तियों की अपेक्षा सबसे ऊपर पाया. इसके बाद राजा ने इस प्रतिमा को परशुराम मंदिर में पहुंचा दिया. परशुराम मंदिर के पुजारी ने प्रतिमा की विलक्षणता को समझते हुए इसे नगर से दूर वरुणावत पर्वत पर स्थापित करने का सुझाव दिया.
भूत, वर्तमान और भविष्य बताने वाले श्री कंडार देवता को संग्राली, पाटा, खांड, गंगोरी, लक्ष्केश्वर, बाडाहाट (उत्तरकाशी), बसुंगा गांवों का रक्षक देवता माना जाता है. वरुणावत पर्वत पर संग्राली गाँव में मूल रूप से स्थापित श्री कंडार देवता के दिव्य स्वरुप के कारण आज भी वहां सदियों से चली आ रही परम्पराएँ जीवित हैं.
संग्राली गाँव में पंडित की पोथी डॉक्टर की दवा, कोतवाल का आदेश काम नहीं आता ! यहाँ केवल कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य है. ये मंदिर श्रृद्धा व आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि ऐसा न्यायालय भी है जहाँ जज, वकीलों की बहस नहीं सुनता बल्कि देवता की डोली स्वयं ही फैसला सुनाती है.
पंचायत प्रांगण में तय ग्रामीण डोली (तस्वीर में दृष्टव्य) को कंधे पर रख कर देवता का स्मरण करते हैं और डोली डोलते हुए नुकीले अग्रभाग से जमीन में कुछ रेखाएं खींचती है इन रेखाओं के आधार पर ही फैसले, शुभ मुहूर्त आदि तय किये जाते हैं. इन रेखाओं के आधार पर जन्म कुंडली भी बनायीं जाती है.
स्थानीय निवासियों में शिव का स्वरुप माने जाने वाले कंडार देवता के प्रति इतनी अधिक श्रद्धा है कि पंडितों द्वारा जन्म कुंडली मिलान करने पर विवाह के लिए मना किये जाने पर वे विवाह देवता की आज्ञा पर तय कर जाते हैं. गाँव में बीमार होने पर पीड़ित को देवता के पास लाया जाता है, सिरदर्द, बुखार दांत दर्द आदि समस्याएँ ऐसे गायब हो जाती हैं जैसे पहले थी ही नहीं.
श्री कंडार देवता के मूल मंदिर का स्थान संग्राली गाँव, उत्तरकाशी शहर से कुछ दूर और चढ़ाई वाले मार्ग पर है. जिले के जिलाधिकारी कार्यालय के मुख्य द्वार पर श्री कंडार देवता का मंदिर सन 2002 में बनाये जाने के बाद अब कंडार देवता (Kandar Devta Temple) शहर के मुख्य स्थान पर विराजमान हैं जिससे जिले के हर क्षेत्र के आगंतुक श्रद्धालु दर्शन लाभ प्राप्त कर रहे हैं.
दर्शन उपरान्त मन्दिर के पुजारी जी से जानकारी लेने के उपरान्त कुछ तस्वीरें क्लिक की और होटल में भोजन करने के बाद हम अगले गंतव्य की ओर चल दिए.
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