Monday, 12 September 2016

बकरीद ( Bakreed )



राह चलते बस यूँ ही....

         गंतव्य की तरफ बढ़ रहा था तभी जामा मस्जिद से लाल किले की तरफ जाने वाली सड़क के दोनों तरफ खूब चहल-पहल दिखाई दी. बकरों की खरीद-फरोख्त का बाजार लगा था. कौतूहल जगा ! बाइक एक तरफ खड़ी करके माहौल का आनंद लेने लगा. राजधानी में बकरीद के मुकद्दस मौके के करीब आते ही अन्य बाजारों में भी रौनक बढ़ गई है.
       सुना है कि पुरानी दिल्ली के कबूतर बाजार में छोटे अली ने अपने बकरे की कीमत 64 लाख रुपये लगा रखी है. बकरे की खासियत यह है कि इसके शरीर में 'अल्ला हू' और '786' का निशान प्राकृतिक रूप से बना हुआ है.
     पिछले साल बकरीद (Bakreed ) से पहले राजस्थान में एक बकरे को खरीदने के लिए 48 लाख रुपए तक की बोली लग चुकी थी लेकिन बकरे के मालिक गोविंद चौधरी इसे 61 लाख रुपए से कम में नहीं बेचना चाहते थे. बकरे की देखभाल का तरीका आलीशान था. बकरे को बाकायदा कार से लाया ले जाया जाता था. और खाने में सिर्फ मेवे ही दिए जाते थे !
     कुर्बानी की सटीक और सारगर्भित व्याख्या तो मजहब के जानकार ही कर सकते हैं. मैं तो बस इतना जानता हूँ कि बेशक मजहब कोई भी हो लेकिन मजहबी परम्पराओं में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से मानव कल्याणार्थ सार्थक सन्देश अवश्य होता है ! परम्परा को हम किस रूप में, किस तरह निभाते व अपनाते हैं ये व्यक्तिगत विषय हो सकता है लेकिन परम्परा में निहित सन्देश को देश-काल-परिस्थितियों के अनुरूप आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व तथ्यपरक दृष्टिकोण अपनाते हुए सकारात्मक रूप से अपनाने की सम्यक आवश्यकता है ..
       बकरों के इस बाजार में क्रेता और विक्रेता दोनों में खरीद-फरोख्त को लेकर खूब उत्साह था...मेरे लिए यही एक कौतुहल का विषय था लेकिन मुझे अपने इच्छित गंतव्य पर भी पहुंचना था ... अधिक विलंब न करते हुए बढ़ चला अपने गंतव्य की ओर..


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