नेहरु जी की ससुराल : हक्सर की हवेली .. चांदनी चौक, दिल्ली ... ..
अतीत में सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रही, ऐतिहासिक हवेली, जो चांदनी चौक की भीड़-भाड़ में कहीं गुम हो गयी ! ...
खजांची की हवेली में दोपहर हो चुकी थी. अब अगले गंतव्य की तरफ बढ़ना उचित समझा. सीता राम बाजार पहुंचकर हक्सर की हवेली का पता पूछा लेकिन इलाके के बुजुर्ग निवासी भी इस नाम की हवेली से अनजान थे !! काफी पूछने के बाद जब हवेली का पता न लगा तो गर्मी में भीड़-भाड़ वाली तंग गलियों में भटकते-भटकते झुंझलाहट होने लगी !कुछ देर सुस्ताने के बाद चाय बना रहे इलाके के पुराने बासिन्दे, जिनसे मैं पहले भी पूछ चुका था, हवेली से जुड़ी जानकारी साझा कर, पुन: हवेली का पता पूछने की हिम्मत की तो सज्जन चाय गिलास में डालते हुए मुस्कराकर कहने लगे . “ ओहो ! तो आप नेहरु जी की ससुराल के बारे में पूछ रहे हैं !” उनकी सकारात्मक मुस्कराहट से गंतव्य तक पहुँचने की कुछ आस जगी ! सज्जन के बताये अनुसार मैं सीताराम बाजार में चौरासी घंटा मंदिर के पास धामाणी मार्केट में तब्दील हो चुकी “ हक्सर की हवेली ‘ तक पहुँच गया.
1850 से 1900 के दौर में कई कश्मीरी परिवार पुरानी दिल्ली में आकर बस गए थे उनमें से हक्सर ब्राह्मण परिवार भी एक था. आज भी चांदनी चौक की “ गली कश्मीरियाँ “ में चंद कश्मीरी परिवार तब की याद दिलाते हैं.
कभी चांदनी चौक की पहचान रही और इतिहास में “ हक्सर की हवेली “ के नाम से मशहूर यह हवेली स्थानीय निवासियों में “ नेहरु जी की ससुराल “ के नाम से जानी जाती है . लन्दन से बैरिस्टरी कर ताजा -ताजा लौटे, 26 वर्षीय जवाहर लाल नेहरु, 8 फरवरी 1916 को दूल्हे के रूप में गुलाब की महकती पंखुड़ियों की बरसात के बीच, पूरी गली में बिछे शानदार गलीचों पर नाचते गाते, चांदी की गिन्नियां लुटाते उत्साहित बारातियों के साथ, जवाहर मल कौल और राजपती कौल के धर्मनिष्ठ कश्मीरी हक्सर ब्राह्मण परिवार की 17 वर्षीय पुत्री, कमला कौल से ब्याह रचाने बारात लेकर आये थे. इस विवाह में नेहरू परिवार के सभी सगे -संबंधी मौजूद थे.
कभी शास्त्रीय संगीत, मुशायरा और कव्वाली आदि कार्यक्रमों की मेजबानी के कारण सांस्कृतिक केंद्र के रूप में पुरानी दिल्ली की पहचान रही इस हवेली में हक्सर परिवार पुत्री के विवाह के उपरान्त कुछ ही वर्ष रहा. उसके बाद 1960 में हक्सर परिवार ने इसे रतन खंडेलवाल को बेच दिया. इसके बाद ये हवेली चांदनी चौक की व्यावसायिक गतिविधियों की भेंट चढ़ गयी. अब हवेली का मुख्य द्वार, कुछ मेहराब व स्तम्भ और पुरानी खांचों से झांकते चंद कलात्मक कोने ही हवेली के सुनहरे अतीत के गवाह है. हवेली का वैभवशाली सांस्कृतिक अतीत अब दुकानों व अव्यवस्थित नीरस भवन संरचनाओं में तब्दील होकर चांदनी चौक की भीड़ में कहीं गुम हो गया है ! इस विवाह में नेहरू परिवार के सभी सगे-संबंधी मौजूद थे।
इस हवेली में 1983 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी इस हवेली में अपने ननिहाल का अहसास पाकर काफी भावुक हो गयी थी और इसको अपनी माँ की याद में अस्पताल में परिवर्तित करना चाहती थी लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. कुछ समय बाद ही इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गयी !
हवेली का उपेक्षित मौन मुख्य द्वार आज भी वरुण, राहुल और प्रियंका को अपनी गोद में दुलारने की आस में टकटकी लगाये दृढ़ता से खड़ा जान पड़ता है !
No comments:
Post a Comment