Wednesday, 13 July 2016

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, उत्तरकाशी ..Uttarakhand ( Shri Kashi Vishwanaath Temple, Uttarkashi, Uttarakhand )




       श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, उत्तरकाशी, Uttarakhand  ( Shri Kashi Vishwanaath Temple, Uttarkashi, Uttarakhand )

      ऋषिकेश ( Rishikesh ) से 170 किमी. की दूरी पर भागीरथी ( Bhagirathi ) नदी के तट पर बसे उत्तरकाशी शहर पहुंचकर बस अड्डे से 200-300 मी. की दूरी पर भोले बाबा को समर्पित विश्वनाथ मंदिर नाम से प्रसिद्ध, शंकराचार्य कालीन वास्तु में निर्मित प्राचीन शिव मंदिर में पहुंचा तो यहाँ से जुडी यादों का कारवां जैसे मेरे इंतज़ार में ही था !!
       कॉलेज के दिनों में पूरा साल हॉकी और क्रिकेट खेलने में व्यतीत कब हो जाता था ! पता ही नहीं लगता था !!. जब परीक्षाओं की डेट शीट मिलती थी तब हर साल परीक्षाओं के रूप में आने वाली इस चिर परिचित मुसीबत में भोले बाबा ही एकमात्र तारणहार जान पड़ते थे !! सबसे पहले साथियों के साथ मंदिर पहुंचकर भोले के दर्शन कर आत्मविश्वास बटोरने का मंगल कार्य किया जाता था. कुछ साथी मंदिर की दीवारों पर अपना रोल नंबर लिखकर भोले बाबा को परीक्षा तारण करवाने की जिम्मेदारी याद दिलाने में किसी तरह की कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते थे !!
       ये तय बात थी कि भोले के सानिध्य में मुझे सकारात्मकता ऊर्जा प्राप्त होती थी फलस्वरूप भरपूर आत्म विश्वास के साथ परीक्षा की तैयारियों में परीक्षा समाप्त होने तक मैं प्रति दिन 18 - 19 घंटे लगातार अध्ययन में जुटा रहता था.
      उत्तरकाशी ( Uttarkashi)  शहर जनपद का मुख्यालय है. केदारखंड ( Kedar khand ) और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए 'बाडाहाट' शब्द का प्रयोग किया गया है। केदारखंड में ही बाडाहाट में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे. तब से यह नगरी विश्वनाथ की नगरी कही जाने लगी और कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा. केदारखंड में इसे “ सौम्य काशी “ भी कहा जाता है.
      उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर ( Vishwanath Temple ) या वाराणसी के रामेश्वरम मंदिर में पूजा अर्चना किये बिना गंगोत्री धाम की यात्रा के अपूर्ण माने जाने की मान्यता इस मंदिर के महत्व को और भी अधिक बढ़ा देती है ..
        मान्यताओं के अनुसार लगभग पत्थरों के ढाँचे के रूप में इस मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश प्रद्युम्न शाह ( Pradyumn Shah) ने करवाया था बाद में उनके बेटे महाराजा सुदर्शन शाह ( Sudarshan Shaah)  की पत्नी महारानी कांति ने 1857 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. आज मंदिर नवीकरण के बाद भी प्राचीनता को बनाये हुए है, मंदिर की अन्दर की तरफ क दीवारों को चन्दन की लकड़ी में मढ़ दिया गया है, चन्दन की खुशबु गर्भ गृह में शिवलिंग के दर्शन की तरफ बढ़ते हुए शांति, शीतलता का अद्भुत वातावरण निर्मित करती है
     गंगोत्री ( Gnagotri ) धाम के यात्री उत्तरकाशी में रात्री पड़ाव डालते हैं यहाँ से गंगोत्री 96 किमी. की दूरी पर है.



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