कई पीढ़ियों के आवागमन का मूक गवाह, लक्ष्मण झूला पुल, ऋषिकेश, उत्तराखंड (Laxman Jhula Pul, Rishikesh, Uttarakhand )
जब भी लक्ष्मण झूला पुल से गुजरता हूँ तो इस पुल से जुडी कई पुरानी यादों से रूबरू हो जाता हूँ. हालांकि मेरे विवाह के बाद के वर्षों में इस झूला पुल से चार पहिया गाडी का आवागमन निषिद्ध हो गया लेकिन अपने विवाह के अवसर पर पारंपरिक चांदी के ढोल, दमाऊ, मसक बाजे और रण सिंघे के पारंपरिक संगीत पर रंवाई का शालीन व मोहक सामूहिक नृत्य करते बारातियों के साथ मैं इस पुल से एम्बेसडर पर बैठ कर गुजरा था.
ऋषिकेश पहुंचने वाले हर पर्यटक व यात्री के लिए लक्ष्मण झूला क्षेत्र को तपोवन, ऋषिकेश से जोड़ने वाला झूलता लक्ष्मण झूला पुल आकर्षण का केंद्र होता और हर कोई इस झूला पुल से एक बार गुजरने का यादगार अनुभव अवश्य पाना चाहता है.
स्थापित मान्यताओं के अनुसार पुल के पास तपोवन क्षेत्र में ध्रुव ने तपस्या की थी पुल के तपोवन की तरफ ध्रुव मंदिर भी बना है कहा जाता है कि गंगा नदी के प्रचंड लहरों से उठते स्वर से तपस्वी ध्रुव की तपस्या में व्यवधान उत्पन्न होने पर तपस्वी ध्रुव ने माँ गंगा से शांत प्रवाह में बहने का निवेदन किया. तभी से यहाँ गंगा शांत बहती है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान् राम ने भी रावण वध उपरान्त ब्रहम हत्या से निवृत्ति हेतु जब तपस्या के लिए हिमालय प्रस्थान किया तो इसी मार्ग का प्रयोग किया. कालांतर में विदेशी मुस्लिम व स्वदेशी राजस्थानी राजपूत राजाओं ने इसी मार्ग का उपयोग कर गढ़वाल पर आक्रमण किये..
पूर्ववर्ती पुल जिसको राय बहादुर शिव प्रसाद तुलशान ने अपने पूज्य पिता राय बहादुर सूरजमल झुनझुनवाला की स्मृति में धर्मार्थ बनवाया था, के अक्तूबर 1924 की वृहत बाढ़ में बह जाने के बाद लगभग उसी स्थान पर ग्रीष्म ऋतु में नदी जल स्तर से 60 फीट ऊँचे व 450 फीट लम्बे इस झूला पुल का निर्माण राय बहादुर शिव प्रसाद तुलशान के वित्त पोषण से पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट ने 1927-29 में किया था. जिसका उद्घाटन 11 अप्रैल 1930 को संयुक्त प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर मेल्कम हेली द्वारा किये जाने के बाद इस झूला पुल को बिना किसी कर के आम जनता की आवाजाही के लिए खोल दिया गया.
कई पीढ़ियों की खट्टी-मीठी यादों को संजोए, लक्ष्मण झूला आज भी ख़ुशी में झूमता आगंतुकों का स्वागत करता जान पड़ता है.
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