Wednesday, 6 July 2016

एक-दूसरे के पूरक ..( Made For Each Other )




एक-दूसरे के पूरक .. ( Made For Each Other )

      सफ़र में चलते-चलते समूह कार्य भावना को प्रदर्शित करते इस दृश्य को देखकर मन में विचार आया कि व्यक्तिगत स्तर पर स्त्री या पुरुष कितनी भी तरक्की कर ले लेकिन यदि दोनों की व्यक्तिगत शक्ति, कौशल व निपुणता एक दूसरे पर हावी होने में व्यर्थ होने की बजाय, सम्मिलित रूप से पारिवारिक व सामाजिक चादर का ताना-बाना बनें तो पारिवारिक व सामाजिक चादर ज्यादा टिकाऊ, बेहतर व सुन्दर बन सकती है.
      स्त्री-पुरुष में व्यक्तिगत रूप से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तक तो उचित है लेकिन प्रतिस्पर्धा के अनुक्रम में एक दूसरे पर हावी होने की मनोदशा समाज के ताने-बाने को दीर्घावधि में विच्छिन्न करती है. संस्कार रहित समाज का निर्माण करती है. प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए स्त्री और पुरुष के दूसरे के पूरक हैं.. प्रतिस्पर्धी नहीं !!


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