Wednesday, 6 July 2016

कुछ हो जाते हैं नम



कुछ हो जाते हैं नम
कुछ उड़ जाते हैं न जाने कहाँ !
   अरमानों का भरोसा कुछ नहीं !!
कुछ उतरते हैं जमीं पर मगर__
   बेशुमार गुम हो जाते हैं न जाने कहाँ !! 

.. विजय जयाड़ा


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