Wednesday, 6 July 2016

चलता-फिरता-बोलता इतिहास



चलता-फिरता-बोलता इतिहास ....

       अनौपचारिक क्षणों की इस तस्वीर में मेरे साथ 87 वर्षीय मेरे ससुर श्री सिंग रोप सिंह तड़ियाल जी हैं. कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो लेकिन जरा सा भी अवसर मिलने पर किसी भी बुजुर्ग जो कि चलते-फिरते और बोलते इतिहास भी हैं, रूबरू होने का अवसर नहीं गंवाना चाहता.
      किताबों को पढ़कर ही किसी विषय पर जानकारी प्राप्त कर स्पष्ट राय बना पाना असंभव है, कुछ जानकारियाँ या तो कलमबंद नहीं हो पाती या विभिन्न कारणों से प्रकाशित नहीं की जाती ! जिससे वो धूमिल होकर विलोपित तक हो जाती हैं !! फलस्वरूप अगली पीढ़ी तक नहीं पहुँच पाती हैं.
      बुजुर्ग ऐसी ही कई जानकारियों का अलिखित पुस्तकालय होते हैं. समयांतराल में विस्मृत घटनाओं व जानकारियाँ व्यवहारिक रूप में बुजुर्गों की याददाश्त का हिस्सा होती हैं. इसलिए बुजुर्गों से संवाद के लिए वक्त निकालना बहुत आवश्यक है.
मेरे लिए मेरे स्वर्गवासी पिता जी पुराने समय की जानकारियों का अथाह व प्रमाणिक श्रोत थे. जब भी ऋषिकेश जाता हूँ तो ससुर जी से पुराने समय की घटनाओं और तत्कालीन सामाजिक ताने-बाने पर चर्चा करना नहीं भूलता.
      सोचता हूँ हमें अपने बुजुर्गों के अनुभव परिपूर्ण ओज क्षेत्र में रहकर सहज रूप में ऐतिहासिक व सांस्कृतिक थाती को संस्कारों में अगली पीढ़ी तक पहुंचाना अपना धर्म समझना चाहिए..
       यकीन कीजियेगा !! मेरी यात्रा डायरी में साक्षर व निरक्षर दोनों ही तरह के बुजुर्गो का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में महत्वपूर्ण योगदान होता है.


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