दुस्साहस !! An Adventures Tour
सामान्य: मेरी दिनचर्या आलस भरी होती है लेकिन जब सफ़र में होता हूँ तो मानो मेरे पैरों को पंख लग जाते हैं.
दिल्ली से इसी 25 जून की रात को बस से प्रस्थान के बाद सात घंटे का सफ़र तय करके सुबह ऋषिकेश पहुंचा और जेठू साहब के बेटे शुभम को साथ लेकर बाइक से तुरंत आगे के 170 किमी. के पहाड़ी सफ़र पर निकल पड़ा. चंबा (उत्तराखंड) तक जंगलों के बीच से गुजरते हुए दो घंटे ठण्ड का अहसास हो रहा था लेकिन चंबा के बाद छायादार वृक्ष रहित सड़क पर तेज धूप और उमस भरे वातावरण में चार घंटे के सफ़र ने शरीर के सारे पेंच ढीले कर दिए.
पिछले कुछ दिनों से लगातार सफ़र कर रहा था तो थकान और नींद के झोके आने पर बाइक कहीं कहीं झूमते हुए चलती ! शुभम ने जब महसूस किया कि मुझे नींद आ रही है तो उसने बाइक संभाली. लेकिन पीछे बैठ कर अब ज्यादा नींद आने लगी झपकी लगने पर बार-बार मेरा सिर बाइक चला रहे शुभम के हैलमेट से टकराता !! अंत में नींद से तंग आकर मैंने फिर बाइक संभाली और हम गंतव्य तक पहुँच गए.
वापसी में अब हम आराम से तस्वीरें क्लिक करते हुए आ रहे थे तो चंबा से लगभग 50 किमी. पहले अँधेरा हो गया. शुभम ने बाइक संभाली लेकिन अँधेरे में मुझे वो असहज दिखा बाइक की गति बहुत कम थी. मैंने शुभम से कहा कि इस गति से तो हम आज चंबा तक ही पहुँच पायेंगे, इसलिए आज ऋषिकेश पहुँचने का विचार त्याग देना चाहिये, आज चम्बा में ही रात बिताई जाय !
चंबा से कुछ पहले मैं स्वयं बाइक चलाने लगा. अँधेरे पहाड़ी सिंगल रोड पर सामने से आते भारी वाहनों की हैड लाइट से आँखें चौंधिया रही थी जिससे सड़क न दिखने के कारण बाइक चलाना दुष्कर लग रहा था लेकिन शीघ्र ही मैंने काबू पा लिया और हम रात के लगभग दस बजे चंबा पहुँच गए. अब मैं सहज था नींद भी उड़ चुकी थी और अच्छी गति से बाइक चला पा रहा था इसलिए चंबा रुकने का विचार छोड़ कर आगे बढ़ गए.
चंबा से कुछ किमी. चलने पर आगे बढने का निर्णय उस समय दुस्साहसपूर्ण प्रतीत हुआ जब घुप्प अँधेरी रात में घने जंगल के बीच जंगली जानवरों का भय और सुनसान गुजरती सड़क पर घना कुहरा आ जाने से दृश्यता शून्य हो गयी ! सड़क पर एक मीटर की मामूली दूरी पर भी कुछ नहीं दिख रहा था. अधिक रात हो जाने से नाका लग जाने के कारण वाहनों की आवाजाही बंद हो चुकी थी। इससे हम स्वयं को बिलकुल अकेला महसूस कर रहे थे ! बाइक का क्या भरोसा कब और कहाँ सुनसान जंगल में जवाब दे जाय !! सोच कर रहा सहा साहस भी जवाब दे रहा था। वातावरण में नमीं इतनी अधिक थी कि बिना वर्षा के ही पूरे कपडे गीले हो चुके थे !!
हम ऐसी जगह पर थे जहाँ से आगे बढ़ने के सिवा दूसरा कोई उपाय भी न था.अनिश्चितता परिपूर्ण मनोस्थिति में साहस बटोरा सोचा " जब सिर ओखली में दे दिया तो अब मूसल से क्या घबराना !" घबराहट त्यागकर इस सफ़र को साहसिक सफ़र के रूप में स्वीकार करके ह्रदय को मजबूत कर लिया कहीं कहीं सड़क में बीचोंबीच डाली गयी सफ़ेद पट्टी और लाइट रिफ्लेक्टिंग स्टिकर्स के सहारे, पहाड़ और खाई की किस तरफ है इससे बेपरवाह अब केवल दो-तीन मीटर की दूरी अर्थात जहाँ तक दिख पा रहा था, सड़क पर दृष्टि गड़ाए बाइक चला रहा था ! ये मान लीजिये सड़क पर सुई खोजते हुए बाइक चला रहा था !! विकट परिस्थितियों के बावजूद भी बाइक की गति वही थी जिस गति से सुबह इसी रास्ते गुजरा था।
इस तरह हम रात लगभग बारह बजे अपनी मंजिल, ऋषिकेश पहुचं गए अब हम दोनों के चेहरे पर विजेता के स्पष्ट भाव झलक रहे थे।
इस दौरान ऐसे भी अवसर आये जब मोड़ों पर थके हुए मस्तिष्क व पलक झपकने भर से बाइक तेज गति में होने के कारण सड़क के डामर से उतरकर कच्ची भूमि में पहुंचकर दिशाहीन हो गयी और आनन-फानन में ब्रेक लगाकर बाइक को सही दिशा देनी पड़ी.
हमसफ़र शुभम का शुक्रगुजार हूँ कि पूरे रास्ते उसने भी घबराहट का इजहार न करके मेरा हौसला बनाए रखने में मदद की।
इतने लम्बे यात्रा संस्मरण को प्रस्तुत करने का उद्देश्य स्वयं के साहस या दुस्साहस को प्रस्तुत करना कदापि नहीं ! एकाएक आमुख विपरीत परिस्थितियों का विवेक व दमखम के साथ सामना करना व्यक्ति में हुनर, आत्मविश्वास और साहस विकसित करता है। लेकिन इसके बावजूद भी सलाह दूँगा कि यदि थकान महसूस हो रही हो तो पहाड़ी घुमावदार मार्गों पर इस तरह का दुस्साहस न किया जाय तो बेहतर होगा.
इस अनुभव के बाद यकीनन कह सकता हूँ कि मानसिक थकान के बावजूद भी वाहन चलाना और अधिक नशे की हालत में वाहन चलाना समान कृत्य है !!
सम्बंधित विभाग यदि पहाड़ी मार्गों पर लाईट व्यवस्था करने में असमर्थ है तो नियमानुसार सड़क के किनारे व बीचोंबीच सफ़ेद या पीली लाइट रिफ्लेक्टिंग पट्टियां व लाइट रिफ्लेक्टिंग स्टिकर्स को बहुतायात में लगाने से आपातकालीन परिस्थितियों में वाहन दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।
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