Thursday 10 March 2016

भादों मंडप : लाल किला : दिल्ली





भादों मंडप : लाल किला : दिल्ली

        आज साथी अध्यापक श्री गिरीश जी ने दिल्ली में कहीं घुमक्कड़ी पर चलने की इच्छा जताई तो हम सहज व सुगम्य लाल किला पहुँच गए. संग्रहालय, बावड़ी आदि देखने के बाद हयात बख्श बाग़ में पहुंचे तो भादों मंडप के सामने बिछी इस हरियल चादर पर कुछ देर बैठ कर सुस्ताने का लोभ संवरण न कर सके..
        दरअसल शाहजहाँ द्वारा काफी बड़े क्षेत्र में बनाया गया, हयात बख्स बाग़, लाल किला परिसर का सबसे बड़ा बाग़ था. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने इसके काफी बड़े भाग को नष्ट कर अपने सैनिकों के लिए बैरक बना दिए थे. इस सुंदर बाग़ में हौज़, मंडप, वॉटर चैनल के अलावा दो मंडप हैं जिनका नाम हिन्दू कैलेण्डर महीनों के नाम पर, “सावन मंडप” और “भादों मंडप” रखा गया था.        
            बादशाह इन मंडपों में बैठकर सावन और भादों महीनों में प्रकृति के शानदार नज़ारे देखा करता था और फनकार, सावन और भादों महीनों के स्वागत में साज और आवाज का जादू बिखेरते थे.
          तस्वीर में ठीक मेरे पीछे भादों मंडप है इन मंडपों पर झरने के रूप में गिरते पानी के कुछ पीछे प्रकाश पात्र और मोमबत्ती रखने के लिए आले बने हैं. रात के समय बहते पानी में सतरंगी झिलमिलाते प्रकाश में दृश्य और भी मनोहारी बन जाता था इन बगीचों में मौसमी फलों के पेड़ों के अलावा .. नीले, सफ़ेद और बैंगनी रंग के फूल बाग़ की सुन्दरता बढ़ाते थे ..
         आज हयात बख्स बाग़ ही नहीं बल्कि दिल्ली में दूर-दूर तक, निरंतर फैलते कंक्रीट के जंगलों के कारण ऋतु फल वृक्षों के दर्शन दुर्लभ हो चुके हैं !!


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