Friday 25 March 2016

पुराना किला : शेर मंडल: हुमायूँ का पुस्तकालय व मृत्यु का मूक गवाह





पुराना किला : शेर मंडल

हुमायूँ का पुस्तकालय व मृत्यु का मूक गवाह 

       मूल विषय पर चर्चा से पूर्व एक प्रसंग का उल्लेख करना चाहूँगा .. महाभारत काल में पांडवों ने कौरवों से पांच गांव मांगे थे. ये वे गाँव थे जिनके नाम के अंत में “ पत “ आता है. जो संस्कृत के " प्रस्थ " ( समतल भूमि) का हिंदी साम्य है। ये “ पत " वाले गांव इंद्रपत, बागपत, तिलपत, सोनीपत और पानीपत थे.
इन सभी स्थानों की भाँति पुराना किला में भी महाभारत कालीन भूरे रंग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं साथ ही मौर्य, गुप्त व राजपूत कालीन पुरावशेष भी मिले हैं, जिससे इस क्षेत्र के महाभारत काल से जुड़े होने की अवधारणा को बल मिला है.
     1913 तक पुराना किला में इंद्रप्रस्थ के अपभ्रंश " इंद्रपत " नाम का गांव स्थित था. राजधानी, नई दिल्ली निर्माण के समय अन्य गांवों के साथ इन्द्रपत गाँव को भी हटा दिया गया था.
सोचता हूँ पांडवों को यमुना किनारे दिए गए पथरीली व ऊबड़-खाबड़ भूमि खांडव प्रस्थ के अंतर्गत इन्द्रप्रस्थ क्षेत्र में सोलहवीं सदी में ऊंचे टीलेनुमा स्थान पर वर्तमान पुराना किला बनाया गया होगा ! तब ये किला यमुना से जुड़ा हुआ था, बहरहाल अब विषय पर आता हूँ..
    तस्वीर में पुराना किला परिसर की 2.4 किमी.लम्बी मोटी-मोटी खँडहर में तब्दील होती दीवारों के से घिरा और किले की भूमि के सबसे ऊचे स्तर पर किला-ए-कुहना मस्जिद के पास शेरशाह सूरी द्वारा 1541 बनवाए गए अष्टभुजाकार, बुर्जनुमा लाल बलुआ पत्थर से निर्मित दुमंजिला ईमारत “ शेर मंडल “ है. कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने आरामगाह के रूप में बनाया था. हुमायूँ ने निर्वासन उपरान्त जब शेरशाह सूरी को परास्त कर पुन: अपना साम्राज्य प्राप्त किया तो इस ईमारत का उपयोग, खगोल विषयक जानकारी हेतु व पुस्तकालय के रूप में करने लगा. कुछ इतिहासकार मानते है कि शेरशाह द्वारा छोड़े गए इस अपूर्ण निर्माण को हुमायूं ने पूर्ण करवाया था। वर्तमान में इसके अन्दर प्रवेश वर्जित है.
           इस ईमारत में हुमायूँ राज कार्यों से फुर्सत के क्षणों में यहाँ अध्ययन किया करता था और आराम के क्षण बिताया करता था.
           इतिहासकार हुमायूँ के बारे में लिखते हैं .... “ हुमायूँ, जीवन भर ठोकरें खाता रहा और उसके जीवन का अंत भी ठोकर खाकर ही हुआ !!”
          24 जनवरी 1556 की शाम को अज़ान की पुकार सुनाई देने पर हुमायूँ हाथों में कई किताबों के भारी बोझ के साथ तेजी से इस इमारत की खड़ी सीढियां उतर रहा था कि अचानक उसका पैर अपने चोगे में उलझ गया फलस्वरूप संतुलन बिगड़ जाने के कारण वह कई सीढियां नीचे सिर के बल लुढ़कता हुआ गिर गया. इस घटना से सिर पर आई गहरी चोटों के कारण, 27 जनवरी 1556 हुमायूँ चल बसा ..




No comments:

Post a Comment