Wednesday 2 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. एक विवेचना .: भाग - एक





अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. 

एक विवेचना .: भाग - एक

          आज DND (  दिल्ली – नोएडा ) फलाई ओवर के ऊपर से गुजर रहा था. मन हुआ यमुना नदी की पृष्ठभूमि में एक तस्वीर क्लिक की जाय ! बाइक रोकी .. पुल के नीचे जल राशि पर नजर डाली तो विश्वास नहीं हुआ कि ये यमुना नदी है ! सोचा ! शायद, बरसात में जमुना खादर के किसी कुंड में इकठ्ठा हुआ पानी है जो कई महीनों तक इकठ्ठा रहने के कारण काला कीचड़ बन गया है !! तभी पुल पर लगा एक सुन्दर सा बोर्ड दिखा जिस पर लिखा था .... 
                                   “ मेरी दिल्ली.. मेरी जमुना .. गन्दगी हटाओ .. जमुना बचाओ “
.....अब पूर्ण विश्वास हो गया कि ये यमुना नदी ही है !!
           यमुना नदी की बात चले और चिर-परिचित, श्री कृष्ण द्वारा कालिय नाग मर्दन प्रसंग का जिक्र न हो तो शायद बात अधूरी ही रह जायेगी !! प्रसंग से तो आप अच्छी तरह विज्ञ हैं लेकिन मैं इस प्रसंग की पूर्व क्षमा सहित वर्तमान सन्दर्भ में विवेचना अवश्य करना चाहूँगा .....
            रमण द्वीप निवासी पन्नग वंशी और कद्रू का पुत्र कालिय द्वापर युग में कोई बाहुबली भू माफिया ही रहा होगा, अतिक्रमण और प्रदूषण फ़ैलाने की प्रवृत्ति के कारण ही प्रचलित प्रसंग में उसे प्रतीक रूप में नाग के रूप में प्रस्तुत किया गया होगा. रमण पर्वत पर पर्यावरण विपरीत कार्यों के चलते जब वहां के राजा गरुड़, कालिय पर क्रोधित हुए तो कालिय नाग अपनी जान बचाने के लिए अपने गैंग के साथ यमुना के किनारे सुनसान खादर क्षेत्र में आकर रहने लगा. लेकिन उसने अपनी मूल प्रवृत्ति को यहाँ आकर भी नहीं त्यागा !!
            कालिय ने अपने गैंग के साथ मिलकर आस पास के लोगों में भय उत्पन्न कर यमुना खादर में अतिक्रमण करके और पर्यावरण विपरीत कृत्यों से जमुना खादर जल कुंडों में इतना अधिक रासायनिक प्रदूषण फैलाया की उन कुंडों का जल अति विषाक्त हो गया जो रासायनिक क्रियाओं के कारण गर्म होकर खौलता रहता था. इस कारण क्षेत्र की जैव विविधता नष्ट होने लगी और जल पीने वाले पक्षी और पशुधन मृत्यु को प्राप्त होने लगा ..
                  उस काल में पशु धन को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था. कालिय के कुकृत्यों के कारण जब जन जीवन बहुत अधिक प्रभावित होने लगा तो श्री कृष्ण ने क्रोधित होकर इस बाहुबली भू माफिया कालिय का मर्दन करके स्थानीय लोगों को राहत दिलाई तथा यमुना क्षेत्र के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त किया ..
                आज के सन्दर्भ में सोचता हूँ कि आज कलयुग में कालिय की वंश वृद्धि बहुत बहुत तेजी से हुई है ! एकाधिक कालिय और उनके गैंग साथियों को पकड़ने के लिए एक नहीं बल्कि कई कृष्ण तैनात किये गए हैं !! और इस कार्य के लिए उनको अच्छा खासा वेतन भी दिया जाता है लेकिन लगता है कलयुगी कृष्णों ने कालिय से मिलीभगत कर गठबंधन बना लिया है !!

               जब खेत की बाड़ ही खेत को खाने लगे तो भला खेत को कौन बचा सकता है !! यमुना किंकर्तव्यविमूढ़ है !! हम कलियुगी पुत्र उसको समय-समय पर धमकाते रहते हैं !! साथ ही सुबह-सुबह ये मन्त्र उच्चारित कर स्वयं को नदियों के प्रति आस्थावान होने का भी खूब " प्रदर्शन " करते हैं .. लेकिन शायद !! ये मन्त्र हम नदियों के प्रति आस्था भाव से नहीं बल्कि उन पर धौंस जमाते हुए आज्ञा भाव में उच्चारित करते हैं !! 

                                       " गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
                                    नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु.. "

                              लेकिन “ पुत्रो कुपुत्रो जायते माता कुमाता न भवति” 
              यमुना आज भी निश्छल भाव में हम छली पुत्रों की प्यास बुझा रही है ! शांत प्रवाहमय है !!
मन में प्रश्न उठा !! कि क्या कलयुग में फिर श्री कृष्ण के अवतरित होने तक यमुना यूँ ही विषाक्त होती रहेगी ? या यमुना को माँ का दर्जा देने वाले हम पुत्रों को माँ यमुना के निरंतर मैले कुचैले होते आंचल को साफ़ रखने में आत्मा की आवाज़ पर आगे बढ़कर योगदान देना होगा ?


DND (  दिल्ली – नोएडा ) फ्लाई ओवर से यमुना का दृश्य



यमुना जल !! 
जय हो यमुना मैया !!
हम सबने मिलकर क्या हाल कर दिया है यमुना का !!


ऋषिकेश के पास गंगा नदी का स्वच्छ जल.. 
जब यमुना उत्तराखंड क्षेत्र में बहती है तो बिलकुल ऐसा ही स्वच्छ जल यमुना नदी का भी दिखाई देता है .. क्या कभी मैदानी क्षेत्र में ये दोनों नदियाँ इतनी ही स्वच्छ दिख पाएंगी

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