Saturday 26 September 2015

चीड़ एक बहुउपयोगी वृक्ष : नई टिहरी

चीड़ एक बहुउपयोगी वृक्ष : नई टिहरी

         जब नई टिहरी पहुंचा तो स्वयं को चीड़ के जंगल के मध्य पाकर मुझे चीड़ के जंगल से घिरे पौड़ी में, तत्कालीन सरकारी आवास में बीता अपना बचपन याद आ गया !! तब आज की तरह आधुनिक मनोरंजन के साधन उपलब्ध नही थे, प्रकृति के आँगन में प्रकृति प्रदत्त सामग्री को मूल रूप में ही बाल क्रीडाओं की सामग्री बनाकर उन्मुक्त व अपार आनंद की अनुभूति होती थी.
         चीड की मोटी छाल को घिसकर “ घुर्रा “ (धागा डालकर दोनों हाथों की उँगलियों से घुमाया जाने वाला खिलौना) बनाते थे, गर्मियों में बाल टोली हवाखोरी करती सड़क के किनारे पड़े चीड़ के बीज उठा-उठाकर खाने में आनंद लेती थी , सबसे ज्यादा आनंद सूखी चीड़ की पत्तियों को बोरे में भरकर ऊँचाई में ले जाकर फिसलने में आता था और ये साहसिक खेल भी माना जाता था क्योंकि अधिक ऊँचाई से फिसलने की होड़ में संतुलन बिगड़ने से हाथ-पैर की हड्डी अक्सर टूट जाती थी.
चीड़ की मोटी बाहरी छाल में कठफोड़वे द्वारा भोजन की तलाश में अनवरत चोंच मारने से उत्पन्न होने वाली कट-कट की ध्वनि, सुनसान में अलग तरह का मधुर संगीत उत्पन्न करती थी .. ये तो रही बचपन की बात, अब विषय पर आता हूँ..
        सामान्यत: 3- 80 मी. तक ऊँचे और 100 से 100० वर्ष तक जीवित रहने वाले ( नेवदा, अमेरिका में 4600 वर्ष पुराना चीड का जीवित वृक्ष है ) चीड के वृक्ष को भूमि में अम्लता बढ़ाने और भूमि को खुष्क करने का दोषी मानकर, पर्यावरणविद वक्र दृष्टि से देखते हैं लेकिन इस वृक्ष की उपयोगिता को कम करके आंकना भी उचित नहीं, हालाँकि खुले में रखने पर चीड़ की लकड़ी की उम्र 2 वर्ष ही होती है लेकिन दुनिया में प्रयोग की जाने वाली उपयोगी लकड़ी में 50 % हिस्सा चीड़ का ही है !
इमारती और फर्नीचर के रूप में प्रयोग की जाने वाली चीड़ की नर्म लकड़ी अब पार्कों और रेस्टोरेंट्स को प्राकृतिक छटा देने में प्रयोग की जाने लगी है.
       चीड़ से प्राप्त होने वाले रेजिन की उपयोगिता से कौन वाकिफ नहीं !! इसकी मोटी बार्क (छाल) के अन्दर वाली पतली सफ़ेद छाल ( बचपन में हम इसे स्वाद के कारण खाया करते थे) में विटामिन A और C प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और कई देशों चीड़ की पत्तियों से चाय बनाने से भी विटामिन A और C प्राप्त किया जाता है.इसकी नुकीली पत्तियों के रेशे से टोकरियाँ व बैग आदि बनाये जाते हैं ..साथ ही इन पत्तियों से प्राप्त होने वाला तेल औषधि में प्रयोग किया जाता है.
       चीड़ की पत्तियों से टकराकर बहने वाली वायु कीटाणुरहित होती है, इसी कारण पुराने समय में, अन्य लोगों को संक्रमण से बचाने व स्वच्छ वायु प्राप्त करने हेतु तपेदिक (Tuberculosis) के रोगी को, चीड के जंगल में रहने की व्यवस्था की जाती थी.
        भौगौलिक बनावट के कारण उत्तराखंड में चीड़ काफी पाया जाता है अत: राज्य सरकार को उच्च तकनीक को प्राप्त कर चीड़ आधारित उद्योग विकसित करने चाहिए इससे स्थानीय लोगों को स्वरोजगार मिलेगा साथ ही राज्य का चीड़ से से जुड़ा अतिरिक्त राजस्व भी बढ़ेगा ..
 
 

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