Saturday 26 September 2015

लाल किला बावड़ी


लाल किला बावड़ी

लाल किले से आई आवाज .... सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज


          कटरा नील से लाल किला तक के कई ऐतिहासिक स्थलों का वर्णन, फिलहाल टाल कर आपको लाल किले में स्थित उस तुगलक कालीन बावड़ी से रूबरू करवाना चाहूँगा जो स्वतंत्रता संग्राम के निर्णायक मोड़ को बयां करती है !!
          दर असल जब भी पर्यटक लाल किले में प्रवेश करते हैं तो लाहौरी गेट से प्रवेश कर छज्जा बाजार पार करते हुए नौबत खाना होते हुए दूसरी इमारतों की ओर बढ़ जाते हैं बावड़ी की तरफ इक्का-दुक्का पर्यटक या शोधार्थी ही रुख करते हैं !! मैंने भी कई बार ऐसा ही किया लेकिन अबकी बार छज्जा बाजार से आगे बाएं होकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्राहलय होते हुए इस बावड़ी पर पहुँच गया. बावड़ी के बाहर गेट पर ताला लगा हुआ था लेकिन मेरी जिज्ञासा व उत्सुकता पर पसीजते हुए सुरक्षाकर्मी ने गेट खोल कर अपनी निगरानी में शीघ्रता की हिदायत देकर मुझे अवलोकन का अवसर दिया.
         तस्वीर में मेरे दायें हाथ की तरफ खुले कक्ष हैं जबकि बाएं हाथ की तरफ वाले खुले कक्षों को बाद में अंग्रेजों अस्थायी जेल बनाने के लिए ने बंद किया था !! इन्हीं कक्षों में अस्थायी जेल के तौर पर ऐतिहासिक “ लाल किला ट्रायल “ के दौरान आजाद हिन्द फ़ौज के अग्रणी अधिकारियों, कर्नल प्रेम कुमार सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह और मेजर जनरल शाहनवाज खान को कैद रखा गया था.
         द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के समर्पण के बाद, अंग्रेजी हुकूमत ने आजादी के इन जांबाज रणबाकुरों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया था.इसी तरह के नौ अन्य मुक़दमे, बंदी बनाये गए 17000 आजाद हिन्द सेनानियों पर अलग-अलग चलाये गए. कर्नल गुरुबख्श सिंह को अकाली दल ने और मेजर जनरल शाहनवाज खान को मुस्लिम लीग ने उनके लिए मुकदमा लड़ने की पेशकश की थी लेकिन कौमी एकता के इन पेरोकारों ने उनकी पेशकश को ठुकरा दिया और कांग्रेस द्वारा गठित डिफेन्स टीम को अपना मुकदमा लड़ने की स्वीकृति दे दी.
         मुकदमा खुले में चलता था हर कोई कार्यवाही को देख सकता था सर तेज बहादुर सप्रू, कैलाशनाथ काटजू, भूला भाई देसाई, जवाहर लाल नेहरु आदि जैसे कई नामी वकील बचाव पक्ष की वकालत करने स्वेच्छा से थे.सर सप्रू के स्वास्थ्य ख़राब हो जाने के कारण भूला भाई देसाई ने मुक़दमे की पैरवी की. 57 दिनों, (15 नवम्बर1945 से 31 दिसंबर 1945) तक उनकी मजबूत दलीलों से मुक़दमे का फैसला बंदी सिपाहियों के पक्ष में दिया गया और सभी सिपाहियों की सजाएँ माफ़ कर दी गयी.
किले में मुकदमा चलता था और धार्मिक संकीर्णताओं से ऊपर उठकर लाल किले के बाहर सड़कों और पूरे मुल्क में तीनों की लम्बी उम्र की दुआएं की जाती थी. नारा लगाया जाता था ... “ लाल किले से आई आवाज .... सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज “
        यह ट्रायल पूरे देश में गज़ब की एकता की लहर लाने में कामयाब हुआ, मुंबई में नौ सेना की टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया. कल तक जो राजनेता ब्रिटिश सरकार का मुखर विरोध नहीं कर पाते थे अब वे खुल कर विरोध करने लगे थे. इस ट्रायल से पूरे देश में उमड़े राजनीतिक, सामजिक एकता व देश भक्ति के सैलाब से अंग्रेज अन्दर तक हिल गए अब उनको अपने सैनिकों की वफादारी पर सन्देश होने लगा !! वे खुद को असुरक्षित समझने लगे !! भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनेकों जनांदोलनों में से एक “ लाल किला ट्रायल ", एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ फलस्वरूप अंग्रेज हुकूमत 15 अगस्त 1947 को बातचीत के माध्यम से सत्ता हस्तांतरण को बाध्य हुई. 

                                          सत्य ही कहा गया है ..." एकता में ही बल है ."
            जब भी लाल किला जाइएगा तो इस ऐतिहासिक बावड़ी को देखकर आजाद हिन्द फ़ौज के जांबाज रणबाकुरों को नमन करना न बिसार दीजिएगा !!

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