Wednesday 23 September 2015

ऋषिकुंड, ऋषिकेश



ऋषिकुंड, ऋषिकेश


           त्रिवेणी घाट को यदि ऋषिकेश का ह्रदय स्थल कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी. श्रृद्धालु यहाँ स्नान अवश्य करना चाहते हैं. जब भी "त्रिवेणी घाट" जाता था, इस नाम की सार्थकता के बारे में विचार अवश्य करता था !! क्योंकि यहाँ पर एक ही नदी , गंगा जी के दर्शन होते हैं .. फिर इस घाट का नाम “ त्रिवेणी घाट “ क्यों !! क्या ये श्रृद्धापूर्वक दिया गया नाम है या हकीकत !! कई प्रश्न मन में उठते थे..
             इस बार जिज्ञासा का ज्वार कुछ अधिक प्रबल हुआ और पहुँच गया त्रिवेणी घाट.. ऋषिकेश .
साथियों, त्रिवेणी घाट परिसर में प्रवेश करते ही दायें हाथ की तरफ कुछ सीढियां हैं यदि आप चढ़ेंगे तो “ऋषि कुण्ड” के दर्शन कर सकेंगे. 142 वर्ग फीट क्षेत्र में बने इस प्राचीन कुंड का जीर्णोद्धार टिहरी के महाराजा ने किया था. कुंड के वास्तु निर्माण में आज भी उसी प्राचीनता के दर्शन किए जा सकते है।
          कहा जाता है कुब्ज ऋषि ने “त्रिवेणी जल” की प्रत्याशा में इस स्थान पर जमुना माँ के अवतरण हेतु कई ऋषियों के साथ मिलकर तप किया, प्रसन्न होकर जमुना जी ने प्रकट होकर इस कुंड के जल को अपने जल से सान्ध्रित कर दिया, भूमि गत जल होने के कारण कुंड का जल गर्म रहता है. साथ ही इस जल में जीवाणु नाशक गुण भी है, कुंड के सामने प्राचीन रघुनाथ (राम) जी का मंदिर है, जिसका मनोरम प्रतिबिम्ब कुंड के बीचों-बीच देखा जा सकता है, कहा जाता है भगवान राम ने वनवास काल में यहाँ स्नान किया था.
          त्रिवेणी घाट परिसर के प्रवेश की बायीं तरफ से सरस्वती नदी, सीधा गंगा जी में मिलती थी, जो कालांतर में सूख गयी. प्राचीन समय में लोग गंगा जी से जल भरकर, जिसमे सरस्वती नदी का जल मिश्रित होता था, को इस कुंड में डालते थे. कुंड के भूमिगत गर्म जल व उसमे सान्ध्रित जमुना जी के जल में मिश्रित हो जाने से कुंड का जल, " गंगा-यमुना- सरस्वती" अर्थात "त्रिवेणी जल" हो जाता था इस प्रकार प्राचीन समय में श्रृद्धालु “त्रिवेणी संगम” जल स्नान का लाभ इस कुंड पर प्राप्त करते थे. त्रिवेणी होने के कारण इस कुंड में पितरों को तर्पण भी दिया जाता है. इस कारण इस घाट को "त्रिवेणी घाट " नाम से जाना जाता है .. त्रिवेणी घाट से ही गंगा जी दाहिनी तरफ रुख करती हैं इस कारण इस स्थान का महत्व और अधिक हो जाता है।
         यकीन कीजियेगा, अधिकतर ऋषिकेश निवासी, ऋषिकेश के ह्रदय स्थल पर स्थित इस कुंड की पवित्रता, महत्व व प्राचीनता से अनभिज्ञ हैं. ऐसे धर्म स्थलों का प्रचार-प्रसार कर, धार्मिक भावना जगाने के साथ-साथ पर्यटन विकास के द्वारा राजस्व में वृद्धि अवश्यंभावी है 
 
 

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