Wednesday 15 July 2015

चंडी घाट से बन्दर भेल, उत्तराखंड

चंडी घाट से बन्दर भेल, उत्तराखंड  : अतीत टटोलने का एक सफ़र 

कारवाँ वक्त का गुजरता है तो 
यादें हो जाती हैं गर्दसार,
    मगर ---
खामोश राहें, बखूबी बयाँ करती हैं
गुज़रे थे कई काफिले इधर से बार-बार ...
...... विजय जयाड़ा

        चंडी घाट से बन्दर भेल अभियान के क्रम में ऋषिकेश से मोहन चट्टी होते हुए लगभग 22 किमी. आगे नोढ़ खाल है. वहां से आधा किलोमीटर पहले एक दुराहे पर हमने बायीं तरफ, नोढ़ खाल माला कुंटी मोटर मार्ग अपना लिया, मार्ग पक्का था लेकिन सड़क के आस-पास काफी दूर तक आबादी न होने पर भी इतना अच्छा मोटर मार्ग देख आश्चर्य भी हुआ. सड़क जिस दिशा में बढ़ रही थी उसको लेकर मुझे शंका होने लगी ! लगभग पांच किमी. चलने के बाद सड़क पर पैदल चलता एक स्थानीय परिवार मिला. उनसे मार्ग की जानकारी लेने पर मार्ग सम्बन्धी मेरी शंका उचित थी ! हमें नोढ़खाल – नांद – सिंगट्याली मार पर चलना चाहिए था ! पुन: वापस उसी मार लौटकर अब हम सही जगह नोढ़खाल पहुँच गए.कभी नोध खाल चट्टी हुआ करता था. अब हमें मुख्य सड़क मार्ग को छोड़कर बायीं तरफ के मार्ग पर चलना था.
      ये मार्ग कच्चा और कम चौड़ा था. इस तीखे ढलानदार मार्ग पर छोटे-छोटे पत्थर थे जिससे बाइक के फिसल जाने का भय था और हमें 6 किमी. इस मार्ग पर चलना था. मार्ग में बाइक के पंक्चर हो जाने पर भीषण गर्मी में खड़ी चढ़ाई  पर बाइक को लेकर वापस आने की कल्पना मात्र से ही, यहीं से वापस हो जाने का मन बनने लगा !! उहापोह की स्थिति में धूप में खड़ा 10 मिनट तक सोचता रहा.. लेकिन अंत में स्वयं पर जीत हासिल की !! कुछ क्षण आँख बंद कर भगवान को याद कर उसके ही भरोसे बाइक पर पर साथी देवेश के साथ चलने लगा !!
      पिछली कुछ पोस्ट्स में अपने चंडी घाट से बन्दर भेल अभियान का जिक्र कर चूका हूँ इस कारण आपके मन में जिज्ञासा उत्पन्न हो रही होगी कि आखिर इस अभियान को मैंने क्यों तय किया .. तो साथियों इस पोस्ट पर इतना ही बताना चाहूँगा कि चंडी घाट से बन्दर भेल पुराने समय में चार धाम यात्रा करने के पैदल मार्ग का एक भाग था जो गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर से होकर गुजरता था ..
     
इसी मार्ग को अपनाकर तैमूर लंग, शाहजहाँ के सेनापति नवाज़त अली खान और दिल्ली के दूसरे मुस्लिम शासकों ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था .. राजस्थान के राजपूत राजाओं ने भी इसी मार्ग द्वारा गढ़वाल पर आक्रमण किया. .प्राचीन काल में नागा साधू सम्प्रदाय के 8000 साधुओं ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए, हरिद्वार कुम्भ स्नान के उपरान्त सशस्त्र बदरीनाथ जाने का निश्चय किया था, लेकिन टिहरी के तत्कालीन राजा ने उनको सशस्त्र आगे बढ़ने की स्वीकृति नहीं दी. फलस्वरूप कुछ नागा साधू बिना हथियार के आगे बढ़ पाए ..अन्य यात्रा अधूरी छोड़ वापस आ गए ..
इस कारण इस बार इस प्राचीन पैदल मार्ग को अपनी आँखों से देखने की इच्छा हुई .. अधिक जानकारी विस्तार से समय मिलने पर अगली पोस्ट्स में साझा करूँगा. 
15.07.15


1 comment:

  1. गुरुदेव आपने अपने "चंडी घाट से बन्दर भेल, उत्तराखंड : अतीत टटोलने का एक सफ़र" वाले पोस्ट में ये कहीं पर भी नहीं लिखा की आखिर ये "बन्दर भेल" उत्तराखंड के किस जिले में है और कहाँ है ......आप से हाथ जोड़कर निवेदन है की ये भी बताने क्रपा कर्रे

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