Saturday 11 July 2015

खंडहर और मीनार

     खंडहर और मीनार  


 खंडहर और_
मीनारों की शक्लों में,
बयां तारीख करती है,
ना बादशाह ही सलामत
  ना तख़्त-ओ-ताज ही बाकी,
इंसानियत से ज्यादा__
    गुमाँ था__
दौलत और तलवारों पर,
   छूट गई दुनिया..
हुए वो भी यहाँ मिटटी,
    रह गए केवल__
   गढ़े किस्से__कुछ खंडहर,
     लटकती मीनार__ही बाकी !!

.. विजय जयाड़ा

No comments:

Post a Comment