Saturday 11 July 2015

उत्तरखंड का पारंपरिक स्वाद; “बाल मिठाई” : अल्मोड़ा


  उत्तरखंड का पारंपरिक स्वाद; “बाल मिठाई” : अल्मोड़ा 

            ईश्वर की लीला अपरम्पार है !! कभी हम खुशमिजाजी में घुमक्कड़ी को प्रेरित होते हैं तो शायद कभी ईश्वर प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न कर हमें स्वाम के सृजन को देखने के लिए मजबूर करता है !!
            तीन-चार साल पहले मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ कुमायूं क्षेत्र मैंने कभी नहीं देखा था लेकिन ईश्वर ने ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न की, कि मैंने दिल्ली से हल्द्वानी होते हुए अल्मोड़ा. बेरीनाग , मुनस्यारी , थल, पिथौरागढ़, ग्वालदम, बागेश्वर सीमान्त गाँव होकरा आदि स्थानों का चप्पा-चप्पा छान मारा, बरसात के मौसम में भीषण आवाज करते उफनते बरसाती गधेरे (नाले) !! खिसकते समूचे पहाड़, भयावह बादलों की गर्जन !! भू-स्खलन के कारण रोड का कहीं अता-पता नहीं !! इस भयानक माहौल के बीच मुझे बीसों किमी. पैदल चलने को मजबूर होना !! ये सब तब मेरे लिए दिवा-काल में भी किसी दु:स्वप्न से कम न था !
          अस्थिर व सशंकित मन:स्थिति में मैंने 12 दिन गुजारे. लेकिन कुमायूं के लोगों के आत्मीयता भरे सहयोगपूर्ण व्यवहार और प्राकृतिक सौंदर्य ने मेरे दिलो दिमाग पर जो अमिट छाप छोड़ी वो आज भी सुखद यादों के रूप में जीवंत है, सच कहूँ तो अपनी गौरवमयी संस्कृति के साक्षात दर्शन करने हैं तो आपको सलाह दूंगा कि कुछ दिन पिथौरागढ़ में रूककर वहां के अप्रतिम सौंदर्य का आनंद लीजिये और वहां के लोगों के सरल व्यवहार का मूल्यांकन अवश्य कीजियेगा..आप निश्चित ही सुखद अंतर महसूस कीजियेगा..
         अब विषय पर आता हूँ ..अल्मोड़ा बस अड्डे से गुजरते हुए सड़क के किनारे दुकानों में रखी “बाल मिठाई”, अपने विशिष्ट स्वाद के कारण सबके आकर्षण का केंद्र होती है प्रसिद्ध कुमायूँनी उपन्यासकार, साहित्यकार व जनमानस में "धर्मयुग " मासिक पत्रिका में प्रकाशित अपनी कहानियों से लोकप्रिय पदम् श्री गौरा पन्त "शिवानी" अपनी यादगारों में "अल्मोड़ा बाज़ार" की बाल मिठाई" का सन्दर्भ देना नही भूलतीं थीं ... शिवानी जी का पैतृक निवास होने के कारण गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर, अल्मोड़ा कई बार आये थे.
          कहा जाता है जोगा लाल शाह हलवाई ने सबसे पहले इस मिठाई को तैयार किया.इसे तैयार करने के लिए खोये और चीनी को गहरे भूरे होने तक पकाया जाता है.ठंडा होने के बाद काटकर..चीनी के छोटे-छोटे सफ़ेद दानों से सजाया जाता है....पहले पोस्ता दाना जिसे खस-खस भी कहते हैं... को चीनी के राब में मिलाकर लपेटा जाता था.पर मंहगाई के कारण अब इसका उपयोग नही किया जाता.... अल्मोड़ा की बाल मिठाई उसी प्रकार लोकप्रिय है जैसे पुरानी टिहरी की यादों में बसी “सिंगोरी “ और लैंसडाउन की “चॉकलेट” मिठाई...
       आज भी कोई परिचित अल्मोड़ा जाता है तो हर कोई उनसे " बाल मिठाई "लाने की हर कोई अपेक्षा रखता है. 17.06.15



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