Saturday 11 July 2015

टिहरी महाराजा का पेय जल स्रोत : तल्ला किन्वाणि, नरेन्द्र नगर, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड




                           टिहरी महाराजा का पेय जल स्रोत :
          तल्ला किन्वाणि, नरेन्द्र नगर, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड


          साथियों, 29 जून की रात को दिल्ली वापसी तय थी लेकिन कुछ विशेष कारणों से स्थगित करनी पड़ी. इस तरह प्रवास के अंतिम दिन, घुमक्कड़ी का कोई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम न होने के कारण पूरा दिन घर पर ही मेहमानदारी में निठल्ला और बेचैन रहा. आखिर शाम को ऋषिकेश से 14 किमी आगे चम्बा मार्ग पर ज्योतिष के जनक ऋषि पुरश्र की, ग्रहों और तारों की गति पर प्रयोग भूमि, नरेन्द्र नगर (ओडाथली) की तरफ बढ़ चला. 

         हालांकि टिहरी रियासत 1949 में भारतीय गणराज्य में विलय के पश्चात एक जिला भर रह गया लेकिन उसकी तत्कालीन राजधानी नरेन्द्र नगर ,जिसे टिहरी शहर से 1903 में महाराजा नरेन्द्र शाह द्वारा राजधानी बनाया गया था, के राज महल का आज भी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व है. आज भी प्रति वर्ष बसंत पंचमी के दिन स्वयं रानी, बदरीनाथ मंदिर की जोत के लिए तिलों से तेल निकालने यहाँ आती है और क्षेत्र की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर उस दिन मंदिर की जोत के लिए वर्ष भर के लिए तेल निकाला जाता है. तेल की शुद्धता व पवित्रता बनाये रहने के लिए रानी सहित सभी महिलाएं मुंह पर कपडा लपेट कर रखती हैं और आपस में बात नहीं करती हैं . बाद में एकत्रित तेल, शोभायात्रा के रूप में  पात्रों में बदरीनाथ के लिए रवाना किया जाता है.   
         ये तस्वीर स्वयं में इतिहास को समेटे तल्ला किन्वाणि गाँव के जल स्रोत की है.महल से लगभग एक किमी. पहले , पहाड़ों की नसों के माध्यम से बहकर यहाँ पर स्रोत के रूप में प्रस्फुटित  इस स्रोत के जल का उपयोग महाराजा द्वारा पेय जल के रूप में किया जाता था. पास में ही महाराजा के तत्कालीन कर्मचारियों के अब खंडहर हो गए आवास भी हैं, जिनमें अब मजदूर रह रहे हैं। कभी जल प्रवाह, खनिज लवण तथा जड़ी- फूट के रस से भरपूर इस जल स्रोत के ठीक ऊपर सड़क निर्माण होने के कारण इसकी जल धारा सिकुड़ती चली जा रही है. यहीं नहीं पूरे उत्तराखंड में पेड़ों के अंधाधुंध कटान, सड़क निर्माण व सम्बंधित विभाग द्व्रारा जल स्रोतों के अप्राकृतिक संरक्षण के कारण सदियों से ग्रामवासियों व पशुधन की जल तृष्णा शांत करते अधिकतर प्राकृतिक पेय जल जल स्रोत सूख चुके हैं या सूखने के कगार पर हैं !!
                       जल ही जीवन है, अतः इस दिशा में ध्यान दिया जाना बहुत आवश्यक है !!
समय बलवान है ! कभी राजसी आकर्षण का केंद्र रहे इस स्रोत के नीचे आज एक फूटे कनस्तर में पानी इकठ्ठा होता दिखा !! ये दृश्य बदले हालात में इस जल स्रोत की दारुण व्यथा बयान कर रहा था !!
ग्रीष्मावकाश यात्रा के इस अंतिम पड़ाव पर रात होने लगी और मैं वापस ऋषिकेश लौट चला 

                                         मैन् त धीत भरि तैं पाणि पियेळि अब आप भी प्या !     01.07.15

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