Wednesday, 12 August 2015

साज


(__ साज __)

कुदरत की 
अठखेलियाँ___ 
सुर निबद्ध 
करता है साज 
सुप्त ह्रदय 
झंकृत कर
जगाता है साज___
कभी आग तो
कभी पानी 
बरसाता है साज
दिलों को
धड़काता और
मिलाता है साज___
बंद लबों को
बुदबुदाता है साज
कभी गुनगुनाते 
लबों को
मौन करता है साज___ 
रौद्र होता 
तो कभी 
शालीन हो जाता साज
कभी रणभेरी 
तो कभी 
मृदुल धुन
सुनाता है साज___
कभी मिलन है 
तो कभी 
विरह है साज
कभी दिन है 
तो कभी 
रात है साज___
माँ की लोरी,
दादी की 
कहानी है साज 
कभी कोयल 
तो नदिया 
बन जाता है साज___
ताउम्र सरगम
सुनाता है साज
कभी ऊँचे
कभी नीचे मध्यम
स्वर सुनाता है साज___
बुजुर्गों की 
लाठी___
बनता है साज
कभी बुजुर्गो का
आशीर्वाद___
बन जाता है साज__ 
हँसाता रुलाता
दोनो ही साज,
गुदगुदाता बहलाता 
नचाता है साज___
संवेदनाओं का सुर,
संस्कृति का
दर्पण है साज,
कुदरत को 
सरगम में__
सजाता है साज__
जीवन से पहले
बाद में भी साज
धरती की गहराई
अनंत ऊंचाइयों में साज ___
.....विजय जयाड़ा 21.02.15


No comments:

Post a Comment