(__ साज __)
कुदरत की
अठखेलियाँ___
सुर निबद्ध
करता है साज
सुप्त ह्रदय
झंकृत कर
जगाता है साज___
कभी आग तो
कभी पानी
बरसाता है साज
दिलों को
धड़काता और
मिलाता है साज___
बंद लबों को
बुदबुदाता है साज
कभी गुनगुनाते
लबों को
मौन करता है साज___
रौद्र होता
तो कभी
शालीन हो जाता साज
कभी रणभेरी
तो कभी
मृदुल धुन
सुनाता है साज___
कभी मिलन है
तो कभी
विरह है साज
कभी दिन है
तो कभी
रात है साज___
माँ की लोरी,
दादी की
कहानी है साज
कभी कोयल
तो नदिया
बन जाता है साज___
ताउम्र सरगम
सुनाता है साज
कभी ऊँचे
कभी नीचे मध्यम
स्वर सुनाता है साज___
बुजुर्गों की
लाठी___
बनता है साज
कभी बुजुर्गो का
आशीर्वाद___
बन जाता है साज__
हँसाता रुलाता
दोनो ही साज,
गुदगुदाता बहलाता
नचाता है साज___
संवेदनाओं का सुर,
संस्कृति का
दर्पण है साज,
कुदरत को
सरगम में__
सजाता है साज__
जीवन से पहले
बाद में भी साज
धरती की गहराई
अनंत ऊंचाइयों में साज ___
.....विजय जयाड़ा 21.02.15
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