Friday, 14 August 2015

निर्झर गीत


 

निर्झर गीत

 
अपनी धुन में
अविरल ...
उज्जवल निर्झर
गीत प्रीत के
गुनगुना रहा,

जीवन बहता
पानी सा ...
कभी उन्नत
कभी गहरा सा,
गिरना भी
टकराहट भी,
सम भाव में
क्यों ...
स्वीकार नहीं !!
एक राग में गाता
अविरल निर्झर..
जीवन सार सुना रहा ...
 
... विजय जयाड़ा
 
Lakshman Jhula Rishikesh.

No comments:

Post a Comment