अल्लाई मीनार : दिल्ली
,दिल्ली का इतिहास टटोलने के क्रम में अल्लाई मीनार पहुँच गया. पुरातात्विक मानचित्र पर क़ुतुब कॉम्प्लेक्स के 40 से अधिक पुरातात्विक महत्व के स्मारकों में से एक, क़ुतुब मीनार दिल्ली की पहचान भी है, अधिकतर पर्यटक कुतुबमीनार, लौह स्तम्भ या कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के आस-पास ही दिखाई देते हैं लेकिन चंद कदम दूर एक तरफ शांत खड़े अल्लाई मीनार के अनगढ़ पत्थरों के ढांचे, जो कि अल्लाउद्दीन खिलजी की अति महत्वाकांक्षा को बयां करता जान पड़ता है, की तरफ कम ही लोग रुख करते हैं !
अल्लाउद्दीन, सिकंदर महान की तरह ख्याति अर्जित करना चाहता था. इसलिए उसने सिकंदर-ए-सानी की उपाधि भी धारण की थी ..उसका सम्पूर्ण शासनकाल युद्धों में ही व्यतीत हुआ.
अल्लाउद्दीन खिलजी दक्षिणी भारत में कई जीत प्राप्त करने वाला पहला मुस्लिम सुलतान था. इन विजयों को चिर स्मरणीय बनाने के उद्देश्य से, कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को चार गुना बड़ा बना देने के बाद, मस्जिद के आकार से मिलान करती और क़ुतुब मीनार से दो गुना ऊँची मीनार बनाने के अपने विचार को मूर्त रूप देने की ठानी थी. नामुमकिन डिजाइन वाली इस ईमारत का प्रथम तल भी पूर्ण नहीं हो पाया था कि अल्लाउद्दीन की 1316 में अचानक मृत्यु हो गयी इसके उपरांत अयोग्य उत्तराधिकारियों के कारण, स्मारक का निर्माण अंजाम तक न पहुँच सका !!
अल्लाउद्दीन को बाजार मूल्य व्यवस्था पर कठोर नियंत्रण के लिए जाना जाता है वस्तुओं के कम दामों के बावजूद भी उसके सैनिकों की तनख्वाह (184 टंका वार्षिक), बाद के सुल्तानों के सैनिकों से अधिक थी. तुलनात्मक रूप से कहा जाय तो अल्लाउद्दीन के सैनिक की तनख्वाह अकबर के सैनिकों से 6 रुपये कम और शाहजहाँ के सैनिकों की तनख्वाह से 24 रुपये अधिक थी.. लेकिन अल्लाउद्दीन का समय पहले का होने के कारण सैनिकों की तनख्वाह सबसे अधिक कही जा सकती है .
No comments:
Post a Comment