मन की बात
अब तक दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा व उत्तराखंड के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों को गहनता से देख चुका हूँ ..जहाँ भी जाता हूँ ऐतिहासिक स्थल का विभिन्न स्रोतों से प्राप्त अधिकतम जानकारी के आधार पर पूर्वाग्रहरहित विश्लेषण करने का प्रयास करता हूँ. फेसबुक जैसे सार्वजनिक मंच पर जितना कहना उचित है उतना साझा करने का प्रयास करता हूँ. कुछ तथ्य सार्वजनिक मंच पर कहना उचित नहीं समझता क्योंकि बड़े-बड़े इतिहासकारों में भी उन तथ्यों पर मतभेद है. इसलिए उन्हें व्यक्तिगत चर्चा तक ही सीमित रखता हूँ..
बहरहाल, आज किसी विशेष विषय पर पोस्ट केन्द्रित न कर इन ऐतिहासिक स्थलों को देखकर मन में उठे भावों को साझा करने की दिली इच्छा के तहत ये कहना चाहूँगा कि विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत पर अधिकार करने के लिए “ तलवार और तरकीब (राजनीति) “ का सहारा लिया.जहाँ उनकी तलवार को चुनौती मिली, उन्होंने वहां धन, मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करने की ललक व नारी सौन्दर्य के प्रति आकर्षण के मानव सुलभ तामसी गुणों को प्रलोभन के तौर पर विनाशक हथियार के रूप में प्रयोग किया !!
फिर किसी जेरा भाई की संतान साबौर भाई .. हज़ार दीनार में बिककर, आक्रान्ताओं के पद-प्रतिष्ठा के लोभ में अपनी ही मातृभूमि को मालिक काफूर बनकर रौंदने न निकल पड़े. फिर कोई राजीव लोचन राय आक्रान्ताओं की सुन्दरता के मोह-पाश में बंधकर, धर्म बदलकर काला पत्थर नाम में रख कर कोणार्क के सूर्यमंदिर के आधार चुम्बकीय “ दधिनौती ” शिला ( इस शिला पर मंदिर की दीवारों का सामंजस्य केन्द्रित था और इसका चुम्बकीय प्रभाव इतना प्रबल था कि आस-पास गुजरने वाले पानी के जहाजों का दिशा नियंत्रक काम करना बंद कर देता था जिससे जहाज दिग्भ्रमित हो जाते थे) को उखाड़ कर खंडहर में तब्दील कर अपने ही श्रद्धा स्थलों को कुचलने का प्रयास न करे फिर कोई मानसिंह, मान-प्रतिष्ठा के चलते मातृभूमि के स्वाभिमान के संरक्षक राणा प्रताप जैसे सूरमाओं को घास की रोटी खाने को विवश न कर दे .. फिर कोई दुल्हे राव जैसे संपोले, झाँसी के दुर्भेद किले पर विदेशियों के प्रवेश के लिए किले का द्वार खोल लक्ष्मी बाई की हमशक्ल झलकारी बाई को बलिदान और वीरांगना लक्ष्मी बाई को किले से निकलने को मजबूर न कर दे !!... ये चंद उदाहरण विचारणीय विषय हैं..
हम विदेशी आक्रमणकारियों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए मन-क्रम-वचन से एक जुट हो.. इसके लिए महाभारत जैसे भयंकर बहराइच के यद्ध, 1033 का अनुसरण करें जहाँ अफगानिस्तान के सालार मसूद की 11 लाख सैनिकों की विशाल सेना को सत्रह स्वदेशी देशभक्त राजाओं ने सुहेल देव के नेतृत्व में लड़कर गाजर-मूली की तरह काट फेंका. ..
किसी क्षेत्र में कमजोर या साधनहीनता की स्थिति में हम चकमौर के युद्ध 22.09.1704 से साहस व देशभक्ति की प्रेरणा ले सकते हैं.. जहाँ महाराजा गोविन्द सिंह जी ने मात्र चालीस सिख साथियों के साथ मिलकर मुगलों के लाखों की तादात में सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए ..
विभिन्न विचारधाराओं के बीच मतभेद अवश्य हो सकते हैं मातृभूमि की कीमत पर मतभेदों को मनभेदों में बदलना उचित नहीं !! मातृभूमि के दुश्मनों के विरुद्ध हमें हर तरह के व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्वाग्रह व संकीर्णता त्यागकर एक ही मंच पर मजबूती से खड़ा होना अति आवश्यक है.. इतिहास हमें शोकसागर में डूबे रहना नहीं सिखाता बल्कि विगत घटनाओं से सीख लेकर आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ...
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