Sunday 15 May 2016

बिन पानी जग सून !



बिन पानी जग सून !

       उत्तराखंड में आजकल जहाँ एक ओर स्थानीय निवासी पेय जल समस्या से जूझ रहे हैं वहीँ ऋषिकेश-चंबा मार्ग पर मर्च्वाड़ी गाँव के पास सड़क किनारे जीविकोपार्जन के लिए झोपड़ी में चाय-पान की दुकान चलाने वाले श्री भगवती प्रसाद भट्ट जी ने बारहों मास के लिए पानी का, सीमित ही सही मगर समाधान निकाल लिया है.
        सफ़र में विश्राम का मन हुआ ! ज्यों ही इस झोपडी के पास पानी देखकर बाइक रोकी, भट्ट जी दुकान से बाहर आकर हमसे मुखातिब हुए. हालांकि जल संस्थान ने पाइप लाइन बिछायी हुई हैं लेकिन भीषण गर्मी में अधिकतर चूक गयी हैं. आस-पास कहीं पानी की व्यवस्था न थी तो सड़क किनारे पेड़ पर लटकते प्लास्टिक पाइप से बहते स्वच्छ शीतल जल को देखकर आश्चर्य हुआ !
       चाय के साथ इस पेय जल के मूल श्रोत के बारे में बात चली तो भट्ट जी ने बतया कि इस जगह से डेढ़ किमी. ऊपर पहाड़ी पर उस स्थान से जहाँ जल संस्थान द्वारा इस बहते पानी का कोई उपयोग नहीं, हार्ड प्लास्टिक पाइप द्वारा पानी यहाँ तक ला पाए है अब यहाँ पर गर्मियों में जब आसपास जल संस्थान द्वारा बिछाई गयी पाइप लाइनों में पानी आना बंद हो जाता है तो आस पास के ग्रामीण इसी जगह से पानी भरकर ले जाते हैं, गुमन्तु गुर्जर मवेशियों के साथ इस जल श्रोत के पास ही डेरा डालते हैं, पर्यटक सुस्ताने के लिए अपनी गाडी रोककर शीतल व शुद्ध जल पान का आनंद लेते हैं, चालक अपनी गाडी भी धोते हैं, स्वयं भोजन बनाकर खाने वाले यात्री अपना भोजन बनाने के लिए इसी स्थान को चुनते हैं.
      पहाड़ों पर गाँव तक पेय जल आपूर्ति के उद्देश्य से सरकार द्वारा जल संस्थान के माध्यम से जल संरक्षण व संचयन पर काफी व्यय किया जाता है लेकिन इसके बावजूद भी गर्मियों में पेयजल समस्या रूपी सुरसा मुंह फैलाये रहती है.
      मनरेगा योजनान्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पक्के रास्तों के निर्माण के बाद अब गर्मियों में पानी की किल्लत झेलते गाँवों में उचित स्थान पर वर्षा जल संचयन में स्थानीय निवासियों का सहयोग लेकर पेयजल समस्या निवारण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
      हालांकि जल विशेषज्ञों की कमी नहीं !! लेकिन अपने यात्रा अनुभवों के आधार पर सोचता हूँ कि यदि राजस्थान व जल न्यूनता वाले अन्य क्षेत्रों की तरह वर्षा ऋतु में पहाड़ों से व्यर्थ बहने वाले जल को ऊंचे पहाड़ी स्थानों पर ही और ग्राम स्तर पर ग्रामीणों के सहयोग से बड़ी-बड़ी टंकियां बनाकर संग्रहण व्यवस्था की जाय तो ये संचित जल, गर्मियों में निर्बाध पेयजल आपूर्ति में सहायक हो सकता है फलस्वरूप वर्षा जल से होने वाले भूमि कटाव व वन संपदा हानि में कमी आ सकती है. साथ ही ये संग्रहित जल हर साल जंगलों में लगने वाली आग को बुझाने के उपयोग में भी लाया जा सकता है।
जल संरक्षण व संचयन वक्त की पुकार भी है 

              क्योंकि “ जल है तो कल है और बिन पानी जग सून ! “

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