Saturday 14 May 2016

ये कहाँ आ गए हम !!



ये कहाँ आ गए हम !!

              सफ़र के दौरान प्रकृति में कुछ संरचनाएं बरबस ही अपनी तरफ ध्यान आकर्षित कर कौतूहल उत्पन्न करती हैं और वहीं रुककर कुछ समय बिताने को प्रेरित करती हैं।
            चूना पत्थर और रेत से निर्मित, साथ ही अपेक्षा से अधिक विस्तृत इस गुफा सदृश आकृति को देख रोमांचित हो जाना स्वाभाविक सी बात है.
            मुख्य गुफा अन्दर की तरफ कई छोटी गुफा सदृश आकृतियों की तरफ बढ़ रही है.
            अन्दर पहुँचने पर शांत वातावरण में ऐसा महसूस हो रहा था कि यदि ऊंचे स्वर में कुछ कहा तो ऊपर की जमीन धसक कर मलबे के रूप में मेरे ऊपर गिर सकती है !!
            इस तरह की आकृतियों में प्रवेश करने से पूर्व यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कोई वन्य जीव गुफा में न हो, अक्सर ऐसी जगह खतरनाक जंगली जानवर के अपने शिकार की ताक में घात लगाकर छिपे होने की प्रबल संभावनाएं होती हैं.
            हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में पक्के मकानों का निर्माण हो रहा हैं लेकिन कच्चे मकानों को लीपने –पोतने के लिए लाल या पीली मिट्टी का अब भी प्रयोग किया जाता है। एक ही जगह से लगातार मिट्टी निकालते रहने के कारण उस जगह जमीन के समानांतर सुरंग (मटखाणी) बन जाती है, कभी- कभी ऊपर की जमीन धसकने से मिट्टी खोदने वाला व्यक्ति मलबे की चपेट में आ जाता है ! बचपन में इस तरह की कई घटनाएँ सुनने को मिलती थीं ।


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