“ निरंतरता “
शीत का
पहरा पड़ा
उष्णता कहीं
बलखा रही,
तिमिर कहीं
घनघोर छाया
कहीं उजास
इठला रहा,
शीत से गुजरता
निरन्तर पथिक
उष्णता की चाह में
अविराम ...
आगे बढ़ रहा,
तिमिर घनघोर
कठिन पथ से गुजर,
उष्ण उजालों को पाकर
विजित मन...
उत्साहित बदन
प्रफुल्लित, हरषा रहा ....
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