Thursday, 3 December 2015

पलायन रोकने में महत्वपूर्ण : उत्तराखंड पर्यटन


पलायन रोकने में महत्वपूर्ण : उत्तराखंड पर्यटन

         उत्तराखंड के लगभग 17000 गावों में से लगभग 1500 गाँव स्थानीय निवासियों के मैदानी भागों में पलायन के कारण निर्जन हो चुके हैं !  इन आंकड़ों से याद आते हैं .. राजस्थान में जैसलमेर के कुलधरा व खाम्भा गाँव !! जहाँ से पलायन कर गए हजारों पालीवाल ब्राह्मण परिवारों के कारण वहां के खंडहर आज भी वहां की तत्कालीन समृद्धि बयां करते दिखाई पड़ते हैं !!!
        जहाँ एक ओर पहाड़ से महानगरों में आकर युवा अपना भविष्य तलाश रहा है वहीँ कुछ युवा कठिन परिश्रम से उत्तराखंड की स्वच्छ आबोहवा में ही स्थानीय संसाधनों के माध्यम से ही जीविकोपार्जन कर अपनी संस्कृति के मध्य जीवनयापन कर उत्तराखंड में जीवन को गति दे रहे हैं !!
       जी हां, तस्वीर में मेरे साथ ऐसे ही एक शालीन, मृदुभाषी व परिश्रमी युवा सुरेन्द्र जी हैं. दूसरे युवाओं की भांति सुरेन्द्र जी ने भी कई वर्षों तक महानगरों में ख़ाक छानी ! दिल्ली, मुंबई और गुजरात में भविष्य तलाशा लेकिन !! कमर तोड़ मेहनत के बाद वही ढ़ाक के तीन पात !! श्रम व्यस्तता व अनियमित आहार-व्यवहार ने सुरेन्द्र जी के शरीर में " यूरिक एसिड " सम्बन्धी विकार भी उत्पन्न कर दिया .
        अंत में हार कर अपना मुल्क याद आया......
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज की पंछी, फिरि जहाज पै आवै॥
....और लगभग एक साल से लक्ष्मण झूला से लगभग तीन किमी की दूरी पर पटना वाटर फाल के पास निर्जन वन में एकमात्र, अपनी इस छोटी सी चाय की दुकान पर पर्यटकों से प्राप्त आमदनी से संतुष्ट हैं.. इस स्थान से सुरेन्द्र जी का गाँव कुछ दूरी पर है.
वाटर फाल के पानी में खनिज अधिकता के कारण सुरेन्द्र जी रोज अपने गाँव से चाय बनाने के लिए 10 लीटर पानी साथ लाते हैं और चाय के साथ ली जाने वाली अन्य खान-पान की वस्तुओं के लिए सड़क तक लगभग 2 किमी.चढ़ाई-उतराई का रास्ता तय करते हैं ! लेकिन अब खुश हैं ..
        उत्तराखंड में पर्यटन आधारित रोजगार की बहुत संभावनाएं हैं. प्रकृति ने उत्तराखंड को उपहार में वो अपार नैसर्गिक प्राकृतिक सुन्दरता दी है जो महानगरों में करोड़ों रुपये व्यय करके बनाये जाने वाले मनोरंजन पार्कों में कदापि संभव नहीं !!
       मैंने घुमक्कड़ी के दौरान कई ऐसे ऐतिहासिक व प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर स्थल देखे जिनके बारे में पर्यटक तो क्या अधिकतर स्थानीय निवासी भी अनभिज्ञ हैं !! आवश्यकता है...प्राकृतिक सुन्दरता को संरक्षित करते हुए पर्यटन विकास को मद्देनजर रखते हुए सुनियोजित त्वरित, मध्यम व दीर्घकालिक फलदायक नीतियाँ बनाकर और उन पर ईमानदारी से अमल करके पर्यटकों की पहुँच से दूर और अज्ञात ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थानों को पर्यटन मानचित्र पर लाने की आवश्यकता है, . इस कार्य में सरकार ग्राम सभावों के माध्यम से स्थानीय निवासियों का भी सहयोग ले सकती है  जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार उपलब्ध हो सके फलस्वरूप पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम आ सके !!


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