Saturday 2 April 2016

उग्रसेन की बावड़ी : दिल्ली




उग्रसेन की बावड़ी : दिल्ली

सूनी खड़ी ताकती दीवारें बयां करती कुछ ख़ास हैं,
रौनकें बस्ती थी यहाँ , अब फिर उनका इंतज़ार है... 
                                                              ^^ विजय जयाड़ा

          कभी दिल्ली खूबसूरत बावडियों का शहर हुआ करता था लेकिन बढ़ते कंक्रीट के जंगल ने उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया .. आज ये बावड़ियाँ सुनसान हैं
        दरअसल आज कनाट प्लेस के पास हेली लेन क्षेत्र में स्थित, दिल्ली की बेहतरीन बावडियों में से एक ‘ उग्रसेन की बावड़ी ‘ अवलोकन का मन था लेकिन साथी ने ऐन वक्त पर साथ चलने में असमर्थता व्यक्त कर दी लेकिन मैं कहा रुकने वाला था अकेला ही ‘ उग्रसेन की बावड़ी ‘ पहुँच गया. उत्साह में बावड़ी के मुख्य द्वार को न देख कुछ आगे बढ़ गया ! दिल्ली के सबसे महंगे स्थान पर अब भी धोबी घाटों को देखकर आश्चर्य हुआ !! खैर कपडे सुखाते धोबियों ने ही मुझे बावड़ी के प्रवेश द्वार के लिए वापस मुड़ने को कहा.
       तुगलक व लोधी कालीन स्थापत्य कला को उकेरती,60 मी. लम्बी,15 मी. चौड़ी और 185 फीट गहरी इस बावड़ी का निर्माण मूल रूप से महाभारत कालीन पौराणिक राजा अग्रसेन द्वारा जल आपूर्ति में आई अनियमितता के कारण जल संग्रहण हेतु किया गया था लेकिन कुछ इतिहास कार इसका निर्माण 14 वीं सदी का स्वीकारते हैं, मुझे तो लगता है पांडव कालीन पुराने किले की तरह ही बाद में इसका भी महाराजा अग्रसेन को पूर्वज मानने वाले अग्रवाल समाज द्वार जीर्णोद्धार कर नया स्वरुप प्रदान किया गया होगा।
      अलग-अलग कोणों से तस्वीर उकेरने में बावड़ी की 105 सीढियां 3-4 बार उत्साह में जल्दी-जल्दी चढने-उतरने से सांस फूलने लगा और पसीना आने लगा तो वहीँ स्थित काफी पुराने नीम की छाँव में सुस्ताने को लेट गया।
      स्थानीय निवासी ऋषि जी जो बचपन से अब तक इसी क्षेत्र में रह रहे हैं उनका साथ मिला तो उनके अनुभवों से रोचकता बढ़ गयी. ऋषि जी के साथ मैं जिस सीढ़ी पर खड़ा हूँ, ऋषि जी के ही अनुसार 30 साल पहले वहां तक पानी होता था , तैराकी के शौक़ीन दूर-दूर से यहाँ तैरना सीखने आते थे लेकिन भूमिगत जल स्तर गिरता गया और आज सबसे अंत में भी पानी के दर्शन नहीं हो पाते !! सबसे नीचे का तल, बहुत छोटे संकरे मार्ग से जल संचयन हेतु बनाये गए मुख्य पक्के कुंए जैसी आकृति के टैंक से जुड़ता है हालाँकि मार्ग दुरूह होने के कारण उस सूखे कुंए को कम ही लोग देखने जाते हैं लेकिन मैं लोभ संवरण न कर सका. ऋषि जी के अनुसार स्वयं उन्होंने व अन्य लोगों ने समय-समय पर यहाँ आस-पास अदृश्य आत्माओं की उपस्थिति का भी आभास किया गया है . 10.09.14 के नभाटा में भी पढ़ा जा सकता है. जब इस बावड़ी में जब पानी था तो कहा जाता था कि इसका काला पानी बलिदान की पुकार लगाता था. यमुना के करीब स्थित इस बावड़ी का सूख जाना भूमिगत जल स्तर के सम्बन्ध में खतरे की घंटी है इसका कारण आस-पास बहुमंजिला इमारतों का निर्माण व उनके 2-3 मंजिला भूतल हैं.. इस बावड़ी में वर्षा जल संचयन द्वारा इस बावड़ी की रौनक वापस लाये जाने का प्रस्ताव शायद पुरानी रौनकें फिर से लौटा दे ...
      बहरहाल, ऋषि जी के रूप में उत्साही युवा साथी मिला. विदा लेने से पूर्व अदृश्य शक्तियों के लिए मशहूर राजस्थान में भानगढ़ किले जाने का कार्यक्रम तय हुआ. धन्यवाद ऋषि जी ...  

                                                              विजय जयाड़ा 21.09.14
 

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