Friday 22 April 2016

स्वस्थ सांस्कृतिक परम्पराएँ .. हमारी पहचान : पगत भोज




 बरात पौन्छ्दा ही सरोळा जी की खरोळा खरोळ !!

                           स्वस्थ सांस्कृतिक परम्पराएँ .. हमारी पहचान


      एक ओर जहाँ शहर के तेज रफ़्तार और दिखावे भरे जीवन में हमारी सांस्कृतिक परम्पराएँ दम तोडती जा रही हैं वहीँ गांवों में अब भी ये परम्पराएँ जीवित हैं. शायद इसी लिए कहा जाता है कि यदि वास्तविक भारत को देखना और समझना है तो गाँव के जन जीवन का अध्ययन आवश्यक है. वास्तव में असली भारत अब भी गाँव में ही बसता है.
    बेशक आधुनिकता की चकाचौंध गाँव तक पहुँच गई है जिसके कारण शहर की तरह गाँव के छोटे बच्चे भी आपको अंकल कहकर संबोधित कर सकते हैं ! लेकिन राह चलते अजनबी व्यक्ति को भी गाँव के छोटे-छोटे बच्चे जब दोनों हाथ जोड़कर शालीनता से .. “ अंकल जी ... प्रणाम “ कहते हैं तो उन बच्चों के प्रति सहज स्नेह छलक जाता है और अनकहे भी दिल से आशीर्वाद भाव उमड़ पड़ता है.
     अब मूल विषय पर आता हूँ .. यात्रा क्रम में विवाह में भी शामिल होना था. शहर की शादियों में व्यंजनों की भरमार बेशक देखने को मिलती है लेकिन जो आनंद व संतुष्टि, गाँव की शादी में खुले प्राकृतिक वातावरण में पंगत अनुशासन में बैठकर सादे चावलों से बने भात और भडू में बनी नौरंगी (मिक्स) दड़बड़ी दाल में आता है वो शहरों की शादियों के व्यंजनों में नहीं आता (आपकी पसंद की बात तो नहीं कह सकता लेकिन मुझे तो बिलकुल नहीं आता). आज भी भडू की दाल के सामने किसी भी नामचीन सेफ द्वारा बनायीं गयी दाल नहीं टिकती !!
     इस संतुष्टि कारक दाल- भात को पकाने वाले एक विशेष जाति से सम्बन्ध रखते हैं जिन्हें “ सरोला “ कहा जाता है. ग्राम्य समाज में उच्च सम्मान प्राप्त ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी ये कार्य करते आ रहे हैं. जिस स्थान पर खाना बनाते हैं उस स्थान पर एक निश्चित सीमा के अन्दर अन्य लोगों का प्रवेश वर्जित होता है बेशक मालिक ही क्यों न हो !! इनके श्रम साध्य व धर्म निष्ठ व्यक्तित्व परआश्चर्य की बात ये भी है कि चिलचिलाती गर्मी हो या कड़कड़ाती सर्दी !! ये बिना किसी सहायक के अकेले ही कुशलता पूर्वक भोजन बना लेते हैं और अकेले ही गाँव के सभी लोगों को पंगत में अपने हाथों से भोजन भी परोस लेते हैं !!
       आधुनिकता की चकाचौंध और दिखावे की होड़ अब गाँव तक भी पहुँच गयी है. शादियों में शहरों से टेंट और हलवाई लाये जा रहे हैं. पंगत भोजन की जगह बूफे भोजन लेने लगा है परिवार की बढती आवश्यकतों की पूर्ति के लिए सरोला लोग शहरों में नौकरियां व अन्य व्यवसाय करने लगे हैं. लेकिन ऐसी परिस्थितियों में भी जो लोग अपने शुभ कार्यों में इस तरह की भाई-चारा व परस्पर सौहार्द बढ़ाने वाली स्वस्थ परम्पराओं को अपनाकर जीवित रखे हुए हैं वे वास्तव में बधाई के पात्र हैं ..
       दगड़ियो्ं, अब यन बता दौं कि दाळ भात कि रस्याण आप तक भि पौंछि कि नि पौंछि !! चला बैठा पंगत मा.. शुरू करा ..सपोड़ा.. सपोड़ !!

भडू में पकती दाल का जायजा 

भोजन तैयार करते सरोला जी 


भोजन परोसते सरोला जी 

पंगत में भोजन 


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