Wednesday 5 August 2015

मेरी यात्रा डायरी के सूत्रधार



मेरी यात्रा डायरी के सूत्रधार

          यात्रा डायरी के जो पृष्ठ, मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ उनमें संकलित जानकारियों में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कई साथियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. यात्रा में जिनसे भी मुलाकात होती है उनके अनुकूल ही बौद्धिक स्तर व परिवेश में उतरने का प्रयास करता हूँ जिससे संवाद सहजता बनी रहे. सर्वप्रथम आत्मीयता बनाना बहुत आवश्यक है. धीरे-धीरे सहज, मिलन सार व आत्मीय स्वभावी स्थानीय निवासी एकत्र होने लगते हैं ! और फिर प्रारंभ होता है खुलकर बातचीत का सिलसिला !! और मुझे कई अबूझ व अलिखित तथ्य आसानी से मिल जाते हैं !!
         ये तस्वीर ऋषिकेश से लगभग 5 किमी आगे, फूल चट्टी पर एक परचून दूकान पर स्थानीय निवासियों से बातचीत के क्रम की है. स्थानीय निवासी पंडित श्री शिव प्रसाद कपरवाण जी 1972-23 के सामाजिक परिवेश का दृश्य चित्र, संवाद में उकेरते हुए बताते हैं कि हमु उस समय बच्चे थे, तब व्यवहार में पैसे का बहुत अभाव था. चार धाम पैदल यात्रा के समय हम 25 – 50 पैसे में सन्यासियों की गठरी ख़ुशी-ख़ुशी, आठ-दस किमी. तक पहुंचा आते थे !!
        साथ ही क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थलों के सम्बन्ध में स्थानीय निवासियों की अनभिज्ञता पर चिंता व्यक्त करते हुए 
व अपराध बोध स्वीकारते हुए बताया कि “ एक दिल्ली निवासी ने मुझसे मेरा निवास पूछा तो मैंने लापरवाही से प्रसिद्ध नीलकंठ क्षेत्र बता दिया.क्योंकि नीलकंठ मंदिर से अधिकतर लोग परिचित हैं . लेकिन जब दिल्ली निवासी ने नीलकंठ मंदिर और आस-पास की जगह की गूढ़ जानकारियां साझा करनी शुरू की तो मैं अवाक रह गया !! क्योंकि मुझे भी नीलकंठ की उतनी जानकारी न थी !! “
     पंडित कपरवाण जी से मुझे ऋषिकेश से देवप्रयाग तक की  " चट्टियों " की महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली .. धन्यवाद पंडित कपरवाण जी , ईश्वर ने चाहा तो पुन: भेंट होगी !!   
        हमारा सौभाग्य है और हमें गर्व है कि देवभूमि उत्तराखंड हमारी जन्म भूमि है लेकिन साथ ही सोचता हूँ कि.. देवभूमि की संस्कृति, इतिहास व भूगोल से वाकिफ होना भी बहुत आवश्यक है, जिससे हम अगली पीढ़ी में अपनी स्वस्थ संस्कृति व परम्पराओं को संस्कार रूप में पहुंचा सकें.
  05.08.15


No comments:

Post a Comment