तैमूर लंग के आक्रमण का मूक गवाह
भरत मंदिर, ऋषिकेश
दिल्ली में जिनका भी राज रहा, उत्तराखंड उनके द्वारा किये गए आक्रमण से अछूता नहीं रहा. पहले अशोक के बौद्ध धर्म प्रसार, फिर चौहान, तुगलक वंश, तैमूर लंग, सैय्यद वंश, मुग़ल वंश गोरखा, उत्तराखंड पर आक्रमण करते रहे और यहाँ के सामाजिक ताने-बाने, कृषि और अर्थ व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट करते रहे. प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से इन आक्रमणों का उद्देश्य, धर्म व सीमा विस्तार, सोना, कस्तूरी व धन प्राप्ति की कामना होता था। इस क्रम में मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा 1337 और तैमुर लंग द्वारा दिल्ली में लूटपाट करने के बाद समरकंद वापस जाते हुए 1399 में किये गए हमलों ने उत्तराखंड में शिवालिक की तराई की उपजाऊ खेती और मानव जीवन को नष्ट प्राय ही कर दिया था..
मूर्ती विरोधी तैमूर लंग ने हरिद्वार, ऋषिकेश क्षेत्र में मार-काट और लूट-पाट मचाने के अलावा मंदिरों को भी क्षति पहुंचाई.ऋषिकेश शहर के ह्रदय भाग में स्थित सबसे प्राचीन भरत मंदिर की दीवारों के निचले भाग पर बनी प्राचीन प्रस्तर मूर्तियों के प्रहारों से विदीर्ण मुखांग आज भी तैमूर की बर्बरता के गवाह हैं. इसे आप मंदिर के पिछले भाग की तरफ जाकर देख सकते हैं. मंदिर के संग्रहालय में दूसरी शताब्दी से 14 वीं शताब्दी तक की मूर्तियाँ , कलात्मक ईंटें, और मिटटी के बर्तन भी संग्रहित हैं ..मेरे द्वारा ली गयी सम्बंधित तस्वीरे नीचे कमेन्ट बॉक्स में अवश्य देखिएगा ..
जन श्रुतियों के अनुसार पटेश्वरी गाँव में धमान सिंह, भड़ (स्थानीय योद्धा), भरत जी के समर्पित भक्त थे., जब तैमूर के सेनापति ने भरत मंदिर पर हमला किया तो भरत जी ने धमान सिंह, भड़ के सपने में आकर, धमान सिंह को तैमूर के सैनिकों से मुकाबला करने का आह्वन किया. धमान सिंह ने प्रतिज्ञा की, कि वो सेनापति की बायीं मूंछ काटकर इसका बदला लेगा. भयंकर युद्ध हुआ. धमान सिंह वीरता से लड़ा.. अपने वचन के अनुसार सेनापति की बायीं मूंछ काटने में भी सफल हुआ लेकिन चारों ओर से घिर जाने के कारण वीरगति को प्राप्त हुआ ..
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