Thursday 13 August 2015

आधुनिकता की भेंट चढ़ती हमारी स्वस्थ परम्पराएँ : रोटाना



        आधुनिकता की भेंट चढ़ती हमारी स्वस्थ परम्पराएँ : रोटाना

                        आज मैं "रोटाना" और उनको बनाने की Computerised मशीन लाया हूँ..
 
         आटे को देशी घी या वनस्पति तेल व गुड़ की चाश्नी में सौफ डालकर अच्छी तरह गूंथकर, नारियल बुरक दीजिए और छोटी-छोटी पेड़ियाँ बनाकर मशीन के बीच में रख कर दबा दीजिये और भूरा होने तक तलिए ..
        लीजिए बन गए "रोटाने".....पुराने समय में क्रय शक्ति भी कम थी और बाज़ार में बनी चीज़ों का परहेज भी किया जाता था ...बाज़ार काफी दूरियों पर होते थे...
       ससुराल से जब बेटियां मायके आती थी तो ससुराल वापसी में काफी पैदल चलना होता था। मार्ग में भूख लगने पर रोट काम आते थे, इसलिए बेटी को विदाई के समय "कलेऊ" के रूप में अन्य चीजों के साथ-साथ रोट भी दिए जाते थे।
       शुद्धता से परिपूर्ण, ये ,स्वास्थ्य अनुकूल परंपरा ,आज समयाभाव की बात कर , आधुनिकता की भेंट चढ़ गई है !! और लगभग समाप्त सी हो गई है !!

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