नक्कार खाने में तूती !!
"संग्रहालयों व स्मारकों में थूकना सख्त मना है।"
विश्व धरोहरों के प्रति, प्रतिदिन आने वाले हजारों स्वदेशी पर्यटकों की संजीदगी व रुझान का अनुमान आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया द्वारा हाल ही में लगायी गयी तथा हिंदी में लिखी .. " संग्रहालयों व स्मारकों में थूकना सख्त मना है " निषेधात्मक चेतावनी पट्टिकाएं, बखूबी बयाँ करती हैं !! साथ ही ये पट्टिकाएँ विदेशियों के सामने हमारे सार्वजनिक स्वच्छता संस्कारों की पोल खोलती भी दिखाई देती हैं !
केवल थूकना ही परेशानी का सबब नहीं !! इन धरोहरों पर " पढ़े-लिखे " पर्यटकों द्वारा भविष्य में यहाँ आने वाले पर्यटकों को स्वयं का स्मरण दिलाने के लिए धरोहरों पर बहुत कुछ " चिर स्थायी " अंकन भी कर दिया जाता है !!
ये निषेधात्मक पट्टिका लाल किला, नक्कार खाने पर लगी है. शायद स्वच्छता की बात करना भारत में नक्कार खाने में तूती की सी आवाज है !! इसी कारण कुछ साल पहले धरोहरों के जिन भागों को हम करीब से देखकर अनुभूत कर सकते थे ! अब उनके बहुत करीब जाना निषिद्ध कर दिया गया है!!
सोचता हूँ विदेशियों के मुकाबले हम बहुत तेजी से " तरक्की " कर रहे हैं !!
सार्वजनिक स्वच्छता, राज्य का दायित्व अवश्य है मगर बच्चों में बचपन से ही व्यक्तिगत व सार्वजनिक स्वच्छता अनुशासन संस्कार स्थापित करना माता-पिता, अभिभावकों व शिक्षकों का राष्ट्रीय कर्तव्य भी है। केवल भारत माता की जय के जयकारों से ही देश की चहुंमुखी प्रगति सुनिश्चित नहीं हो सकती बल्कि मनसा-वाचा-कर्मणा, सुचिता अपनाकर देश की सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक प्रगति सुनिश्चित हो सकती है।
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